कुछ कहा, बहुत कुछ अनकहा रह गया।
साथ साथ चले,मगर फासला रह गया।
उठी थी काली घटायें,बरसे भी थे बादल,
तुम थे रुठे रूठे,ये सावन प्यासा रह गया।
हुए है इस तरह जुदा की, मिल न पायेंगे,
फिर क्यूँ बाकी ये,यादों का सिलसिला रह गया।
थी रात दीवाली की,हर घर रोशन चराग थे,
किसे फिक्र,क्यूँ शहीद का दीप बुझा रह गया।
गमें रोजगार,लाया वक्त से पहले शबाब,
“सागर ” मै अपना बचपन ढूंढता रह गया।
— ओमप्रकाश बिन्जवे ” राजसागर “