लघुकथा – क्षमा याचना
धार्मिक प्रवृति के कारोबारी आत्माराम हर हफ़्ते हाट के दिन अपने दुकान पर ज़रूरतमंदों को सब्ज़ी – रोटी बांटते थे । सुबह से लेकर शाम तक ये सिलसिला चलता रहता था। शाम के समय एक हट्टा – कट्टा नौजवान आत्माराम के दुकान पर सब्ज़ी – रोटी मांगने आया। आत्माराम ने हाथ जोड़कर उससे माफ़ी मांगते हुए कहा, ” भैया, माफ़ कर दो। सब्ज़ी – रोटी खत्म हो चुकी है। तुमने आने में थोड़ी देर कर दी। ”
दुकान पर बैठे आत्माराम के पुत्र ने पिता जी को मांगने वाले से ही माफ़ी मांगते देखा, सुना तो वो आगबबूला हो गया। अपनी नाराज़गी प्रकट करते हुए पिता जी से कहा, “तंदुरुस्त होकर भी लोगों से मांगकर खाने वाले को शर्म आनी चाहिये। ऐसे लोगों से क्षमा मांगने की क्या आवश्यकता है? ” आत्माराम ने अपने बेेटे को समझाते हुए कहा, “अगर हम किसी ज़रूरतमंद के काम नहीं आ सकते, तो उसको भला – बुरा कहने का भी हमें कोई अधिकार नहीं। अगर किसी को कुछ दे नहीं सकते तो उसका दिल भी नहीं दुखाना चाहिए।” ज़रूरतमंद आदमी ने हाथ जोड़कर आत्माराम से कहा, ” आप दोनों की बातें सुनकर मेरी आंखें खुल गई हैं। लाचार, मजबूर न होते हुए भी लोगों के आगे हाथ फैलाना उचित नहीं। आज के बाद मैं ख़ुद मेहनत – मज़दूरी करके, इज़्ज़त की रोटी ही खाऊंगा। ”
— अशोक वाधवाणी