कविता

दूर गगन में पर फैलाए

दूर गगन में पर फैलाए,
विचरण करती टोली।
पक्षी दल दम भरकर उड़ते,
करते बहुत ठिठोली।
भगवान सूर्य के पहले ही,
यह सब हैं, जग जाते।
चीं -चूं की चहचहाहट से,
सबका आलस दूर भगाते।
रंग- बिरंगे, तरह- तरह के,
सबके मन को भाते।
फुदक-फुदककर इधर-उधर,
उछल- कूद खूब मचाते।
नवजीवन का संचार करें,
प्रेम मगन मन गाते।
दु:ख-सुखमें सब साथ मिल,
सबका साथ निभाते।
चिड़ियों की दुनिया अलग है,
पर हमसे अच्छी है।
मानव स्वार्थ भरा प्राणी है,
चह- चह करके कहती है।

— अनुपम चतुर्वेदी

अनुपम चतुर्वेदी

वरिष्ठ गीतकार कवयित्री व शिक्षिका,स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार, गजलगो व मुक्तकार,संतकबीर नगर,उ०प्र०