नारी सशक्तिकरण में हिन्दी साहित्य की भूमिका
आज वर्तमान समय में नारी अपनी प्रतिभाओं के माध्यम से जिस प्रकार नई – नई उपलब्धियों को हासिल कर अपने परिवार, जनपद, प्रदेश तथा देश को गौरवशाली बना रही हैं | इसमें नि:संदेह हिन्दी पत्रकारिता के अतिरिक्त हिन्दी साहित्य का भी विशेष योगदान है | नारी की स्वतंत्रता ही नारी सशक्तिकरण का मुख्य उद्देश्य है | इस स्वतंत्रता के अन्तर्गत नारी के प्रति हो रहे सामाजिक दुर्व्यवहार जैसे- सामाजिक व पारिवारिक हिंसा, उत्पीडन, असमानता, अत्याचार, अार्थिक तंगी आदि सम्मिलित हैं | हिन्दी साहित्य के अनेक कलमकारों ने नारी के प्रति हो रहे अन्याय का अपने कविताओं, कहानियों, उपन्यासों, लेख पत्रों, निबन्धों आदि के माध्यम से विद्रोह किया, जिस कारण आज नारी की दिशा और दशा दोनों उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर है | उदाहरण स्वरूप आपने महाकवि निराला की कविता “वह तोड़ती पत्थर” तो पढ़ा ही होगा, जिसमें एक महिला मजदूरनी की आत्मनिर्भर चित्र को कविता द्वारा छायांकित किया गया है | हां, ठीक इसी भांति हिन्दी साहित्य में नारी सशक्तिकरण के अनगिनत सवालों का जवाब मौजूद है |
— महेन्द्र कुमार मध्देशिया