कविता

बदलते रिश्ते

सच मानों तो  दिल की बातें,
और  किसी  को  न  बताना।
जख्म चाहे हो  जितने  गहरे,
दिल  खोलकर  न  दिखाना।
झूठी    दुनियां  , झूठे   रिश्ते,
मोल    समझ    न     पाएंगे।
रो      रोकर     यह     पूछेगे,
हंस  कर   सबको   बताएंगे।
दस   मुखौटे  पहन  कर  यह,
अपना     तुमको     बताएंगे।
कैसे   समझोगे   तुम  इनको,
जब    यही    तुम्हे   रुलाएंगे।
झूट के   आगे    सच   हारेगा,
सच्चा    मन    बस    रोयेगा।
फरेबी      चेहरे    के    आगे,
मुस्कान   भी    तू    खोयेगा।
हर पल  रंग  बदलती  दुनिया,
दिल को अपने  समझा  देना।
बचपन जैसे नादान नहीं दिल,
ये दिल को  भी  समझा देना।

— शहनाज़ बानो

शहनाज़ बानो

वरिष्ठ शिक्षिका व कवयित्री, स0अ0,उच्च प्रा0वि0-भौंरी, चित्रकूट-उ० प्र०