मुक्तक/दोहा

स्वागत नव वर्ष नव संवत्सर 2078

हे काल-चक्र-प्रसूत नव वर्ष , संवत्सर
अभ्यागत काल-खंड के नव सूत्र-धर
प्रारब्ध के संकेत, भवितव्यता विचार
स्वागत करें दूरस्थ हो, कर जोडकर

विगत ने बहुत कुछ हमको सिखाया
सो रहे थे तान चादर, उसने जगाया
अखिलविश्व की तोड-तंद्रा,चैतन्य कर
नश्वर, क्षण-भंगुरता का पाठ पढाया

नहीं लौटता, जो भी बीता, खोया कल
हर निशा पश्चात होता प्रभात प्रज्ज्वल
जिजीविषा आशाओं को मूर्त-रूप देती
त्रासदी मैं भी मिल जाते खुशियों के पल

भले निराशा पूर्ण लगें ये चंद पंक्तिया
पर यथार्थ से दूर नही उन्मान,उक्तियां
अपना किया आप, दूसरे भी भोग रहे
निष्फल होती दीख रही सभी शक्तियां

चैतन्य, उठो पुन: विश्वास जगाओ अपना
रोक सकते है इस काल-कलमष का पनपना
आत्मानुशासन को कर सकें हम पुनर्स्थापित
निश्चित ही पूर्ण होगा, हर देखा हुआ सपना

हमारी तो संस्क्रति है, करना अतिथि सम्मान
पलक पांवडे बिछा, देकर उन्हें देव-सम मान
भले-बुरे का, पहले ही दिन हम क्यों विचार करें
श्रेष्ठ ही होगा नवागत, यह क्यो न हो अनुमान

फिर यह तो है ‘आनंद संवत्सर, लायेगा आनंद
पर्यावरण निर्मल बने, मिटे विषाणु जो स्वच्छंद
आओ ‘विजुअल,’ ही नये वर्ष का जश्न मनायें
लौते हम सबके जीवन में हर्ष और आनंद

— डा. ऑमप्रकाश गुप्त

डॉ. ओमप्रकाश गुप्त

वरिष्ठ सलाहकार, निवर्तमान प्राध्यापक मेडिसिन विभाग महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान सैवाग्राम, वर्धा, महाराष्ट्र, ४४२१०२ पूर्व अधिष्ठाता, और विभागाध्यक्ष, मेडिसिन हिंदी प्रकाशन-- उत्तरायण- वार्धक्य संबंधित, मराठी से अनूदित रोशनी की अनंत तलाश-- कविता संग्रह माण्डूक्योपनिषद-- हिंदी पद्यरूपांतर व्यास की विरासत-- (प्रकाश्य)-- मराठी से अनुवाद