हे जग जननी
हे जगत जननी दुर्गे अंबे,
हे महामाया अंबिका,
तोडो ये चक्रव्यूह अब,
मन जिसमें मेरा उलझ रहा,
नहीं ज्ञान मुझको भाग्य का,
जीवन मरण की चाल का,
मन घिर रहा संताप से,
बन जाओ अब तुम चंडिका।
हर ओर जीवन के लिए,
सब लड़ रहे संग्राम हैं,
महिषासरों के भेष हैं,
और रक्त रंजित प्राण हैं,
चहुं ओर फैला रोग जो,
अब कुछतो इसको विरामदो,
मां पुनः तुम अवतार लो,
आ जाओ बनकर चंडिका।
मां प्राण फूंको आयु में,
सृष्टि की पावन वायु में,
जो अकाल ग्रास में जा रहे,
मुख ढाको शुंभ निशुंभ का,
यह विश्व पावन भारती,
मिलकर करें तेरी आरती,
तोड़ो ये पूरा व्यूह अब,
बन जाओ माॅ तुम सारथी,
बन जाओ माॅ तुम चंडिका।
है त्राहि – त्राहि मची हुई,
विकराल है यह रक्तबीज,
प्यासा ये रक्त का हो रहा,
आंचल भी मां का छन रहा,
कैसे समाये लालों को
ये धरा भी है सहमी हुई,
मां मान ममता का धरो,
बन आओ अब तुम चंडिका,
हे जगत जननी दुर्गे अंबे,
हे महामाया अंबिका।
— मोहिनी गुप्ता