ग़ज़ल
बताएं ना हरदम बुरा हम किसी को
कभी देख लें हम भी अपनी कमी को
मचलता है मासूम कलियों को जो भी
नहीं शर्म आती उस आदमी को
जहां जिस्म बिकते हैं जिंसों की मानिंद
कभी मुड़ के देखो न ऐसी गली को
सदा आ रही है न जाने कहां से
बढ़ा दे रही है मेरी बेकली को
तराना मोहब्बत का बनके फिरो तुम
खुशी ही खुशी दो हरिक आदमी को