प्रेम पूजा रिश्तों का बीज होती है बेटी
बड़े ही नाजों से घरों में पलती है बेटी
बाबुल की हर बात को मानती है बेटी
घर में माँ के संग हाथ बटाती है बेटी।
छोटें भाइयों को डांटती समझाती है बेटी
माता-पिता का दायित्व निभाती है बेटी
संजा,रंगोली ,आरती को सजाती है बेटी
घर में हर्ष,उत्साह ,सुकून दे जाती है बेटी।
ससुराल जाती तो बहुत याद आती है बेटी
पिया के घर रिश्तों में उर्जा भर जाती है बेटी
इंसानी जिन्दगी का मूलमंत्र होती है बेटी
दुनिया होती है अधूरी जब न होती है बेटी।
— संजय वर्मा “दृष्टि”