सामाजिक

स्त्री कोई देवी नहीं जो देवी बनाकर ठगी जाये

बेटी एक प्रेम और लक्ष्मी के सिंघासन पर बैठाई गयी एक देवी है ,माता पिता भी बेटी के हाथ जल्दी पीले करने की सोचते रहते हैं ,क्योंकि उन्हें डर रहता है की समाज की तीखी जवा़न या भूखी नजरें  उनकी बेटी पर हमला न कर दे ।

लेकिन बेटी के भी अपने दायरे होने चाहिए ये भी जरुरी है उसका अपना भी स्वाभिमान होना चाहिए कि कोई मुझसे गलत सवाल न करे मैं ऐसा कोई काम न करूं जिससे मेरे और मेरे परिवार को कुंठित या लज्जित न होना पड़े ।माता पिता को भी बेटी को सिखाना चाहिए बेटी तुम मेरी लक्ष्मी हो तो इतना खयाल रखना तुम्हारा काम है वांकी जिन्दगी जीने का पूरा अधिकार तुम्हें है जैसे चाहो जियो बस अपनी मर्यादा में ।

अब बेटी को प्रकृति ने इतने सलीकेदार बनाया और जिम्मेदारी दी है दुनिया और घर सम्हालने की तो प्रकृति का पालन भी तुम्हें ही करना है ,वर्ना इतना कुछ तुम्हारे लिये प्रकृति नहीं चुनती उठाओ तुम इतना बोझ तो उठाओ जरुरी है सृष्टि तुम्हीं से जो रची है।

लेकिन तुम एक बुरी लड़की मत बनना तुम्हारी पहचान देवी रूप में मानी जाती है बेटी मत बनना मंथरा और मत बनना कुवडी इतना जरुर बनना एक बेटी से एक पूर्ण स्त्री …..

बेटी को सिखा दिये सारे संसार के गुण अवगुण की पहचान , वही बेटी बहू बनने पर क्यों भूल जाती है अपने दायरे मान सम्मान क्यों भूल जाती है अपने माता पिता जैसा खयाल प्रेम इज़्ज़त अपनी ससुराल के माता पिता की ,जब तुम अपने घर में सब का खयाल रखती हो तो ये भी तुम्हारा ही घर है माता पिता दोनों जगह एक होते है

एक माँ जन्म देती है तो दूसरी माँ पालने के लिये बेटा !

बेटे से ज्यादा तुम्हारा अधिकार है बेटी जिसे आज तक बेटियाँ ये समझती आयी है कि उनका कोई घर नहीं उनका अपना वर्चस्व नहीं ये गलत सोच है

बेटियां के दोनों घर है एक जन्म देनें बाला एक पालन करने बाला शादी के बाद तुम्हारा हक हो जाता है पति और उसके घर पे ….

लोग कहते हैं बेटी मायके में पिता के नाम से जानी जाती है ,ससुराल में पति के नाम से सौभाग्य है तुम्हारा तुम दो नामों में शामिल हो पहचानी जाने के लिये।

लेकिन बेटे भी पिता के ही नाम से जाने जाते है ,जब वो खुद अपने वर्चस्व को हासिल करते है अपने को इस लायक बनाते है तब ही अपने नाम से जाने जाते है ।

तुम भी तभी अपने नाम से जानी जाती हो जब अपना वर्चस्व बना कर कुछ हासिल कर लेती हो लेकिन तब तक दो नामों से पिता और पति पहचान है  ।

तुम्हारा निस्वार्थ प्रेम ही तुम्हारी पहचान है ,,

बुरी स्त्री होना छोड़ दो ,स्त्री के हर रुप को जीत लो ।

सुन्दरता प्रेम कल्पना तुम्हारे हिस्से का हिस्सा है।।

— शिखा सिंह

शिखा सिंह

जन्मस्थल - कायमगंज स्नातकोत्तर- के.एन.कालेज कासगंज. प्रकाशन- विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में आलेख एवं कविताएँ प्रकाशित जैसे - लखनऊ से, उत्कर्ष, लखनऊ से रेवान्त पत्रिका ,जनसंदेश टाईम्सअखबार,अग्रधारा पत्रिका, अनुराग ,अनवरत, कविता संग्रह, भोजपुरी पंचायत, लोक चिंतक कवि हम - तुम कविता संग्रह और अन्य पत्रिकाओं में भी प्रकाशित सृजन पोर्टल दिल्दी बुलेटिन पोर्टल अन्य !! सम्पर्क-जे .एन.वी.रोड़ फतेहगढ़ फर्रुखाबाद (उ प्र,) पिन कोड- 209601 e-mail [email protected]