नवसंवत्सर
चैत्र प्रतिप्रदा से ही नवसंवत्सर क्यों मनाते हैं?
नया साल, हिंदू नववर्ष भारत में चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से मनाया जाता है, इसे दूसरे शब्दों में नवसंवत्सर भी कहते हैं। चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को सृष्टि का आरंभ हुआ था, इसीलिए हमारा नववर्ष भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को आरंभ होता है। इसी दिन ग्रह और नक्षत्र में परिवर्तन होता है, इसीलिए हिन्दी महीने की शुरुआत इसी दिन से बताई गई है।
कहा जाता है कि इस दिन भारतवर्ष में कालगणना प्रारंभ हुई थी। ब्रह्मपुराण के अनुसार जगतपिता ब्रह्मा जी ने इस दिन ब्रह्मांड की रचना शुरू की थी। इस दिन मुख्यत: ब्रह्मा जी का और उनके द्वारा निर्माण की गई दुनिया का वरदान देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षसों, गंधर्वों, कीटनाशकों, मनुष्यों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीटाणुओं का ही नहीं बल्कि रोगों और उनके उपचार तक का पूजन किया जाता है।
कालांतर में भगवान विष्णु के मत्स्यावतार का आविर्भाव सतयुग का आरंभ इसी दौरान हुआ था। वृहत संहिता की व्याख्या करते हुए 966 ईंसवी में उत्पल ने लिखा था कि शत् साम्राज्य को जब सम्राट विक्रमादित्य जी ने पराभूत कर दिया था तब नया संवत् अस्तित्व में आया जिसे आज़ विक्रम संवत् के नाम से हम जानते हैं। इस संवत में समय की गणना सूर्य और चंद्रमा के साथ अन्य कई ग्रहों के आधार पर मानी जाती है। सत्ताईस नक्षत्र होते हैं जिनमें अट्ठाइस नक्षत्र अभिजीत को शामिल नहीं किया गया है।
अब दो नक्षत्रों के समूहों से राशि बनती है।
इस समय वातावरण में एक प्रकार का नव उल्लास समाहित होता है जो मन को आह्लादित कर देता है। नवरात्र की शुरुआत भी इसी पावन दिन से की जाती है।
इस बार हिंदू नववर्ष 13 अप्रैल 2021 से मनाया गया। इस दिन से सभी शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
नव वर्ष सभी के लिए खूब फूले-फले। सभी के जीवन में नई चेतना का आविर्भाव हो। कोरोना जैसी महामारी हमारे जीवन से कोसों दूर चली जाय। इसी उद्देश्य के साथ कुछ पंक्तियां मन के कोने से उजागर होती हुईं…
‘नूतन वर्ष, हर्षित मन,
पर! कहीं किसी कोने में सहमा सा मन,
फिर भी कुछ कर लें नया,
जो कर लिया, जो बीत गया,
उसको कर लें नमन,
जो आगे है उस पर कर लें विचार नया,
चिंता, दुख, हठ, क्रोध से,
न हो मलिन मन,
खुद पर कर विश्वास,
हर दिन रचें नया इतिहास,
प्रेम में पगे उद्गगार का,
मन बन जाय पुष्प सा,
बिछ जाय जिस पथ पर,
वो पथ हो सुवासित,
जग सुवासित, नभ सुवासित,
आओ मनाएं नव वर्ष,
गौरव संस्कृति का,
जो धोतक है उत्कर्ष का।’
मौलिक रचना
नूतन गर्ग (दिल्ली)