और इंसानियत मुस्कुरा उठी
कोरोना ने अपने विकराल स्वरूप में पूरे देश में दुबारा दस्तक दे दिया था और हजारों जिंदगियों को लील कर अपने भयानक इरादे का परिचय दे रहा था।
पचासी वर्षीय पंडित रामप्रसाद जी पिछले दो तीन दिनों से हल्के बुखार से पीड़ित थे। कभी कभी तेज खाँसी उन्हें जानलेवा महसूस होने लगती। तीन बेटियों व बेटे बहू से समृद्ध उनका परिवार उनकी सेहत को लेकर काफी चिंतित था। कोरोना का चिर परिचित लक्षण उनकी चिंता बढ़ाने के लिए काफी था। अब तो उन्हें साँस लेने में भी समस्या होने लगी थी। उनके उचित इलाज के लिए अस्पताल में एक अदद बेड की तलाश जोरों पर थी।
बड़े प्रयासों के बाद शहर के एकमात्र कोरोना अस्पताल में एक बेड का जुगाड़ करके पंडित रामप्रसाद की बेटी सीमा उन्हें लेकर अस्पताल पहुँच गई।
अस्पताल के बाहर मरीजों की भीड़ मार्मिक दृश्य उपस्थित कर रही थी वहीं उनके लिए एक अदद बेड का जुगाड़ करने का हरसंभव प्रयास करते उनके रिश्तेदारों व परिचितों की भीड़ माहौल में अफरातफरी सा अहसास करा रही थी।
सबसे बचते बचाते सीमा ने पंडित रामप्रसाद को रिसेप्शन काउंटर के सामने बिछी कुर्सियों में से एक पर बैठा दिया और स्वयं रिसेप्शन खिड़की पर जाकर अपने पिताजी के लिए निर्धारित बेड के लिए पर्ची भरने की औपचारिकता पूरी करने लगी।
पहले से खड़े कई मरीजों के रिश्तेदार सीमा की तरफ अचरज से देख रहे थे। अभी कुछ देर पहले ही तो एक नर्स ने बाहर आकर अस्पताल में एक भी बेड उपलब्ध न होने की सूचना दी थी। अब सीमा को पर्ची भरते देख उनकी खुसरफुसर स्वाभाविक थी।
तभी लगभग तीस पैंतीस वर्षीया एक महिला अपने पति के साथ रिसेप्शन काउंटर पर पहुँची व अपने पति की खराब हालत का हवाला देकर उन्हें अस्पताल में दाखिल कर लेने की विनती करने लगी। उसके पति की हालत वाकई गंभीर थी और उसे अन्य चिकित्सकीय सुविधाओं के साथ ही ऑक्सीजन की भी अत्यंत आवश्यकता थी। काउंटर पर अपने दोनों हाथ जोड़कर निवेदन करते हुए वह महिला फफक पड़ी थी लेकिन असंवेदनशीलता तो ऐसे कर्मचारियों में कूट कूट कर भरा होता है सो नतीजा तो वही होना था जिसकी आशंका थी। बेड उपलब्ध न होने का रटारटाया उत्तर देकर उसे टरकाने का भरपूर प्रयास किया गया लेकिन वह महिला लगातार विनती करती ही रही। उस महिला को झिड़क कर भगा ही दिया जाता अगर पंडित रामप्रसाद ने बीचबचाव नहीं किया होता।
उसे भगा रहे अस्पताल कर्मी से पंडित रामप्रसाद ने उस महिला के पति को अस्पताल में दाखिल कर लेने का पुरजोर आग्रह किया लेकिन कोई नतीजा नहीं । अस्पताल कर्मी बेड न होने की अपनी बात पर अड़ा रहा।
इस बीच पंडित जी ने मन ही मन एक खतरनाक निर्णय ले लिया था। उस महिला को अपने बगल की कुर्सी पर बैठने का इशारा करके वह खिड़की के सामने खड़ी अपनी बेटी सीमा के पास पहुँच गए और बोले, ” बेटी ! देखो ! अब मुझे कुछ अच्छा लग रहा है। शायद घर पर ही इलाज से ठीक हो जाऊँ, इसलिए तुम यह बेड मेरे लिए मत लो। इस व्यक्ति की हालत देखो । इसकी स्थिति गंभीर है। बेड की सख्त जरूरत इसको है ,मुझे नहीं। बेड इसको दे दो …!”
पर्चा भरने में मशगूल सीमा अपने पिता की बात सुनकर सन्न रह गई। तत्काल उससे कुछ कहते नहीं बना लेकिन कुछ पलों बाद ही उसके मुख से निकला , ” लेकिन पिताजी ! आपकी सेहत …!”
उसका वाक्य अधूरा रह गया था जब पंडित रामप्रसाद की गंभीर आवाज उसके कानों से टकराई, ” बेटी ! मेरी चिंता न करो ! मैं बिल्कुल ठीक हूँ , और फिर मेरा क्या ….! मैं अपनी जिंदगी पूरी जी चुका हूँ और संतुष्ट हूँ अपनी जिंदगी से जबकि उस व्यक्ति की तरफ देखो ! देखो उसकी हालत को ..! अभी उसका जीना अधिक जरूरी है। ..मेरी बात मानो बेटी .. दे दो अपना बेड इस इंसान को !”
विवश सीमा की आँखें छलक पड़ीं पिता की बातें सुनकर । अभी वह अनिश्चय की स्थिति में ही थी कि तभी पंडित रामप्रसाद की आवाज ने एक बार फिर उसे झकझोर दिया था। वह कह रहे थे, ” बेटी भावनाओं बहकर स्वार्थी न बनो ! मैंने तुम्हें यह शिक्षा तो नहीं दी थी। मेरी बात मानो और इंसानियत का फर्ज पूरा करो।”
” जैसी आपकी आज्ञा पिताजी !” कहकर अपने आँसू पोंछते हुए सीमा ने पर्ची भरना जारी रखा और पर्ची पर मरीज का नाम व उसका विवरण भर दिया।
अपने नाम से पर्ची भरी जाते देख वह महिला भावावेश में रो पड़ी।
कुछ देर बाद उस व्यक्ति को अस्पताल में दाखिल कराके सीमा गीली पलकें लिए अपने पिताजी के साथ घर वापस आ गई। व्यर्थ के सवालों से बचने के लिए सीमा ने अस्पताल में बेड न मिलने का बहाना घरवालों से कर दिया था। पंडित रामप्रसाद जी को अपनी बेटी का यह झूठ बड़ा प्यारा लगा और उसे मन ही मन ढेरों आशीर्वाद दिया। उन्हें अपनी बेटी पर गर्व की अनुभूति हो रही थी और चेहरे से संतोष झलक रहा था।
कोरोना अब पंडित रामप्रसाद के कमजोर जिस्म पर पूरी तरह काबू पा चुका था। उनकी साँसें उखड़ने लगी थीं। परिजनों के हरसंभव प्रयास के बावजूद वह कोरोना से हार गए।
सीमा ने अस्पताल में फोन करके पता लगाया। उसने जिस व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती कराया था ,अब वह काफी हद तक खतरे से बाहर था और काफी तेजी से उसके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा था।
घरवालों के करुण विलाप के मध्य ही सीमा की नजरें ऊपर उठीं। सामने का दृश्य देखकर वह आश्चर्यचकित रह गई।
शुभ्र धवल पोशाक में उसके पिताजी आसमान में उड़ते हुए से लगे। उनके जिस्म से विशिष्ट रोशनी निकल रही थी और उन्होंने शुभ्र वसना एक महिला का हाथ थाम रखा था जो लगातार मुस्कुराए जा रही थी।
उस महिला की तरफ घूमती सीमा की नजरों को महसूस करते हुए पंडित रामप्रसाद जी मुस्कुराए और बोले, “बेटी ! इनसे मिलो! ये हैं ‘इंसानियत’ !”
आँसुओं से भीगी झिलमिलाती पलकों के मध्य दोनों हाथों से नमन करते हुए सीमा ने देखा, ‘अब उसके पिताजी की छवि अंतर्ध्यान थी और ‘इंसानियत’ लगातार मुस्कुराए जा रही थी।
राजकुमार कांदु
( सत्य घटना पर आधारित एक कहानी )