कविता (मिस यू माँ)
माँ ही वर्ण है माँ ही शब्द है, माँ व्याकरण का सार हुई
सारी सृष्टि समाहित जिसमें ,माँ जीवन का आधार हुई
माँ ही कविता माँ ही छंद हैं, माँ ही गीत गजल रुबाई है
माँ का दिव्य रूप है बेटी में, है बेटी माँ की परछाई है
माँ गीता की है दिव्य ज्ञान है, माँ रामायण की श्लोक है
माँ आस्था की दर्शन ,माँ ही तो ब्रह्माण्ड और त्रिलोक है
संगीत का स्वर माँ के हृदय में, माँ वीणा की झंकार हुई
माँ ही मुरली का मधुरिम स्वर ,माँ ही वेदों की वाणी है
माँ ही गंगा माँ ही यमुना,माँ ज्ञान की देवी वीणापाणी है
माँ सूर्य का दिव्य तेज है, माँ ही तो चंद्रमा सी शीतल है
पापों को हरती जग को तारे, माँ ही तो गंगा का जल है
बेटी का हौसला माँ है, दूर होकर के अहसासों जैसी है
आत्मा की ज्योति माँ, अटूट विश्वासों में सासों जैसी है
जब वर्णन किया देवो ने तो, माँ अनंत निराकार हुई
ममता की स्याही से ,निज संतान का भाग्य लिखती हैं
सब कहते हैं माँ घर , मुझमें तेरी दिव्य छवि दिखती है
तू दूर होकर माँ मेरे अहसासों में आज भी उपस्थित है
दिखती नही लेकिन , आंखों में नमी सी तू उपस्थित है
तू आज जहाँ है लोग उसे , ब्रह्म का परलोक कहते हैं
लेकिन मेरी को ईश्वर आकाश में स्थित आलोक कहते हैं
तेरी यादें में मेरी माँ ममता की मूरत सदा ही साकार हूई
माँ ही वर्ण है माँ ही शब्द है, माँ व्याकरण का सार हुई
— आरती शर्मा (आरू)