नींद किसी को आती नहीं, किसी की उड़ती नहीं। वैसे सबसे नायाब नींद तो दिन में पसीने से नहाने वालों को ही आती है,पर बिखरी किताबों के बीच, हाथ से लुढ़की अधखुली किताब के साथ आई वो नींद भी सहृदयों को सम्मोहित करती है।
आदमी तीन मिनट तक बिना प्राणवायु के, तीन दिन तक बिना पानी के और तीन माह तक बिना भोजन के जिंदा रह सकता है। एक दिन भी बिना नींद के निकालना काफी मुश्किल काम है। प्रसन्न रहने के लिए अच्छी नींद जरूरी है और अच्छी नींद के लिए प्रसन्न रहना जरूरी है। पसीने से नहाने वालों की प्रसन्नता भरी बेसुधावस्था वाली नींद का राज़ सिर्फ वो स्वयं ही जानते है पर नींद नहीं आने वालों के सारे राज़ आम प्रकृति के है और दुनिया जानती है।
जिंदगी के दिन मूसलाधार बारिशों की तरह बरस के निकले जा रहे है। कल की अच्छी नींद के लिए आज की नींद को थोड़ा कष्ट दो या आज की अच्छी नींद के लिए कल के कष्ट को थोड़ी देर सुला दो। बेशक रात सोने के लिए है पर दिन खोने के लिए नहीं है। अरमानों की क्यारियों में खेती करने वाले मजदूर बनों। अपनी आज के दिन की उपलब्धियों की गठरी सिरहाने रखकर चैन से नींद लो। सूरज अल सुबह जगाने आयेगा करवट बदल कर मुँह मत फेर लेना।
याद रखो, नींद की ये नैसर्गिक विरासत अनगिनत सालों पुरानी है, “जागो ज्यादा, सोओ कम।” हमारी कर्मठता के गीत आने वाली पीढ़ियां कुछ इन शब्दों में गायेगी।
“तिनके तिनके चुन के लाया,
चहचहाता जोश था वो,
नींद में इठलाते हम थे,
पहरे पर जब होश था वो”
सविता जे राजपुरोहित