प्रेमगीत
मेरी आंखों में जो सपने ,सजन! तूने सजाये है ,
उन्ही सपनों की बस्ती में , मैंने दिन बिताएं है ,
कभी सोचा नहीं मैंने ,ऐसा रंग प्यार का होगा ,
उड़ती हूँ हवाओं में ,और संग यार का होगा ,
मीठी प्यार की बातें, तेरे इंतजार की रातें ,
इन्ही में रहकर के मैंने , ये सपने सजाये है ,
लगाई आग क्यूँ तूने सजन ! मेरे सूखे सावन में ,
घटाये प्यार की आईं तो, मैंने आँसू बहाये है ,
कभी आओ गली मेरे ! तुम्हे छुप के मै देखूं ,
मकां मेरा बहुत ऊँचा , उसमे छज्जे बनाये है ,
जहाँ पर तुम मिलो मुझको, वहीं पर मैं तुम्हारी हूँ ,
निगाहें मिली जहाँ तुमसे, वहीं पर दिल मैं हारी हूँ ,
अदायें और बांकाँपन, निराला है सनम ! तेरा ,
तुझे देखूं तुझे पाऊँ , धड़कता है ये दिल मेरा ,
तुझे देखा नहीं कबसे ,है मिलन की आस आँखों में ,
रूबरू हो सकूँ तुमसे,”सरल” हम मिलने आये हैं ,
मेरी आंखों में जो सपने ,सजन! तूने सजाये है ,
उन्ही सपनों की बस्ती में , मैंने दिन बिताएं है
— राकेश श्रीवास्तव “सरल”