कविता

मानव जो मजदूर कहलाते

आओ जाने समझे मानव जगत में
कौन मानव है जो मजदूर कहलाता है।
इस जग में बहा अपना खून पसीना
जो दूसरे के लिए आशियाना बनाता है,
खुश होता चंद रुपयों को पाकर जो
वही मजबूर मानव मजदूर कहलाता है।
बना निज हाथों को पत्थर सा कठोर,
जो पत्थर पर भारी हथौड़ा चलाता है,
रात दिन तोड़ता पत्थर भोजन के लिए
वही मजबूर मानव मजदूर कहलाता है।
करने को सुलभ यात्रा सभी जन की,
जो मानव रेल की पटरियां बिछाता है,
पर होता स्वयं का जीवनपथ कठिन,
वही मजबूर मानव मजदूर कहलाता है।
सहकर भीषण गर्मी सर्दी वा बरसात,
सबके लिए अनाज खेत में उगाता है,
चुकाने को कर्ज निज निवाला जो बेचे,
वही मजबूर मानव मजदूर कहलाता है।

ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम

तिलसहरी कानपुर नगर