मुक्तक/दोहा

दोहे श्लेष के…

(1)

हार नहीं स्वीकार तू, मुश्किल से लड़ मीत।

मन में जोश उमंग हो, तब मिलती है जीत।।

(2)

मन से गा कीर्तन-भजन, होंगे ईश प्रसन्न।

जीवन में तू फिर कभी, होगा नहीं विपन्न।।

(3)

स्वप्न देखना छोड़ मत, यदि कुछ पाना मीत।

स्वप्न पूर्ण करना तुझे, गाकर श्रम के गीत।।

(4)

नव-किरणों को साथ लें, आया नवल प्रभात।

बीती बातें भूलकर, करो नई शुरुआत।।

(5)

जीने की रख तू ललक, प्रत्याशा मत छोड़।

आयेगा अच्छा दिवस, मेहनत कर जी तोड़।।

(6)

निष्ठापूर्वक कर सदा, तू अपना हर काम।

होने मत देना कभी, पेशे को बदनाम।।

(7)

हिमगिरि जैसा हो अटल, जब खुद पर विश्वास।

लक्ष्य प्राप्ति भी तभी, पूरी होती आस।।

(8)

करके अनुपम कर्म नित, ऐसा करो कमाल।

आन बढ़े निज राष्ट्र की, जन-जन हो खुशहाल।।

(9)

उचित कार्य में शक्ति का, करिए सदा प्रयोग।

तभी जगत में आपको, इज्जत देंगे लोग।।

(10)

किसी चोट या रोग से, जब-जब उठता शूल।

तब-तब दवा समान हैं, मुस्कानों के फूल।।

श्लेष चन्द्राकर

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