कविता

मत हो उदास

मत हो उदास…
तेरे आस पास,
ये जो माहौल बना है,
माना अंधियारा घना है,
छंट जायेगा।
बुरा वक्त है,
पर कट जायेगा।
छोड़ न आस…
मत हो उदास।

निराशा घनघोर है,
संकट भी चहुँ ओर है।
संदेशे जो आ रहे हैं,
सीधे दिमाग पर छा रहे हैं।
सब डरे हैं, अंदर से मरे हैं।
क्या तिमिर भी उजाला खाता है?
रात उपरांत दिन भी आता है।
तो छोड़ उच्छवास…
मत हो उदास

क्या सूरज ने उगना,
हवा ने बहना छोड़ दिया?
क्या बर्फ ने गिरना,
नदियों ने रुख मोड़ लिया?
क्या नव पत्र नहीं आए,
वृक्षों पर पतझड़ के बाद?
थमा समय चक्र क्या?
तो कर प्रयास…
मत हो उदास।

हार जाओगे,
अगर मन हारेगा।
ये मन ही है…
जो तुम्हें तारेगा।
फिर समयानुकूल आएगा,
बुरा काल भी बीत जायेगा।
छोड़ना न हौंसला,
कर स्वयं पर विश्वास…
मत हो उदास।

सुधीर मलिक

भाषा अध्यापक, शिक्षा विभाग हरियाणा... निवास स्थान :- सोनीपत ( हरियाणा ) लेखन विधा - हायकु, मुक्तक, कविता, गीतिका, गज़ल, गीत आदि... समय-समय पर साहित्यिक पत्रिकाओं जैसे - शिक्षा सारथी, समाज कल्याण पत्रिका, युवा सुघोष, आगमन- एक खूबसूरत शुरूआत, ट्रू मीडिया,जय विजय इत्यादि में रचनायें प्रकाशित...