माँ को पत्र
प्यारी माँ
आशा है आप स्वस्थ होंगीं ।
मैं कोविड संक्रमण से काफी हद तक ठीक हो चुकी हूँ और आपसे बहोत सारी बातें करना चाहती हूँ।
मैं और मेरा गर्भस्थ शिशु दोनों स्वस्थ हैँ, जो मंत्र आपने बताये थे पूजा में उनको पढ़ती हूँ, मानसिक शांति मिलती है ।
आपसे बिना मिले 3 महीने ही हुयें हैँ माँ पर ऐसा लगता है मानो कई वर्ष बीत गए , आपसे जब भी बात होती है आप आश्वाशन देती हैँ की आप जल्द ही मिलने आएंगी, कभी मुझे अपने पास बुलाती हैँ, पर मुझे ज्ञात है माँ ये आश्वासन मात्र दिल बहलाने के साधन हैँ।
हम दोनों ही जटिल परिस्थितियों में फंसे हुए हैँ जहाँ हम मात्र बातों से ही एक दूसरे को सम्बल दे सकते हैँ, इस महामारी से ग्रसित होने के बाद मैं शरीर से ज्यादा मन से दुर्बल महसूस कर रही हूँ माँ,
मुझे पता है दुर्बलता स्त्री को शोभा नहीं देती, जिम्मेदारियां हमेशा कर्म करने को विवश करती हैँ मगर ये मन भाग भाग कर अतीत में खो जाता है
जहाँ ना कोई विवशता थी ना परीक्षा बस आपके प्रेम का अथाह आँचल था जिसमे मैं सुरक्षित रहती थी।
मुझे याद आता है कैसे आप हमेशा सुबह मुझ से पहले उठकर काम करने लग जाती थीं, अगर कोई कुछ कहता तो आप बोलती की ससुराल में तो करना ही पड़ेगा अभी से क्यों परेशान करुँ ।
शायद आपको शुरू से ही पता था की परिस्थितियां बदल जाएंगी , शायद दुनिया की हर माँ को पता है की बेटी को माँ से ज्यादा दुलार कहीं नहीं प्राप्त होगा ।
मुझे याद है की बचपन में सुनाई हुई हर कहानी में आपने मुझे जीवन के अच्छे रंग ही दिखाए, सब अच्छा होगा कह कर आप मुस्कुरा देती थीं और मेरे लिए यही अटल सत्य था, यह प्रेम की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है आप ना जाने किस जादू से हर दुख को सुख में बदल देती थीं, जीवन का एक अध्याय इतने आंनद में गुजरा की अब मन उसी मृगतृष्णा में उलझा रहता है, मन आपके स्पर्श के लिए विचलित रहता है माँ ।
कुछ समय तक यह संघर्ष चलता है फिर मेरा वर्तमान मुझे अतीत से दूर खींच लाता है और मैं दिनचर्या की जोड़ -तोड़ में पुनः जुट जाती हूँ ।
आप भले ही मुझसे बहुत दूर हैँ पर आपके साथ बिताया हर पल मेरे लिए अनमोल खजाने जैसा है, जिसके जगमगाते रत्न मेरे जीवन की अँधेरी रातों को प्रकाश से भर देते हैं।
मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूँ की उन्होंने इस जन्म में मुझे आपकी बेटी होने का सौभाग्य दिया, हमेशा मुस्कुराती रहिये माँ ।
आपकी प्यारी
गुल्लन