लघुकथा – पानी रे पानी
गर्मी का मौसम होने के कारण हर किसी को पानी की अधिक ज़रूरत होती है। शहर में पीने के पानी की जबरदस्त किल्लत हो गई। लोग दूर – दूर से पानी लाने लगे। जो लोग आर्थिक रूप से सक्षम थे, वे पैसा खर्च करके पानी का छोटा टैंकर मंगवाते थे। दया धर्म जतलाते हुए पास-पडोस वालों को भी थोड़ा बहुत पानी दे देते थे।
एक बड़ी गली थी। आमने-सामने बहुत सारे घर थे। गलीवालों ने बड़े टैंकर से पानी मंगवाने का विचार किया। लेकिन लोगों से रुपये वसूलना और किस घर को कितना पानी देना चाहिए, इस बात पर कोई एकमत नहीं हुआ। आखिरकार तंग आकर आत्माराम ने ख़ुद के खर्च पर टैंकर मंगवाने की घोषणा की। वे कारोबारी होने के साथ-साथ समाज सेवक भी थे। एक सुबह पीने के पानी का बड़ा टैंकर गली के मोड़ पर आया। सभी घरों में अफरा-तफरी मच गई। सभी औरतों में होड़ मच गई पहले पानी भरने की। आत्माराम सभी से हाथ जोड़कर बिनती कर रहे थे कि सभी लोग लाइन में आईये, सभी को पानी मिलेगा। जैसे ही टैंकर के नल खुले, पहले मैं, पहले मैं के चक्कर में उपस्थित लोगों में पानी को लेकर झगड़ा शुरू हो गया। बात हाथापाई तक पहुंची। लोग एक दूसरे से उलझते रहे और उधर पानी ज़मीन पर गिरता रहा। पूरी गली ने नाले का रूप धारण कर लिया। लोग तब होश में आए जब टैंकर पूरा खाली हो चुका था। लोगों के पानी के बर्तन खाली थे। उनके पास पछताने के सिवाय कोई चारा नहीं था। सभी एक दूसरे को ही कोस रहे थे कि आपकी वजह से हमें पानी नहीं मिला। मुरझाए चेहरे लेकर सभी अपने घरों को लौटने लगे।
— अशोक वाधवाणी