वो गुज़रे दिन
ज़माने की हवा बदल रही हर दिन,
कहाँ चले गये अब वो बहार के दिन,
ख़त्म हो चला इंसानियत का दौर ,
हर तरफ़ आँसू दर्द शोर ईद के दिन ।
चाँद , सूरज, हवा सब ग़मगीन है,
कौन खुश है इस बार ईद के दिन ।
हर तरफ़ है शोर बरपा ईद आयी है,
कितने है ग़म का शिकार ईद के दिन।
बचपन के खेल झूले वो बहार के दिन,
आती याद सखियाँ आज ईद के दिन।
रौनक तो सारी कोरोना में उड़ गईं ,
जलती बुझती आस बाक़ी ईद के दिन।
याद आएंगे आज सब जाने वाले दिन,
बात बात पर खुशियाँ लाने वाले दिन।
बहुत मनचले थे, लेकिन लगते थे भले,
नये नये सपनों में रोज़ सताने वाले दिन।
घबराओं नही ये अंधेरा भी जाएगा ।
फिर आ जायेंगे वो बहार के दिन ।
— आसिया फ़ारूक़ी