ग़ज़ल
वो दीवानगी क्या जो रोशन नहीं है
मुहब्बत मुहब्बत है बंधन नहीं है।।
उसी के ख्यालों में खोई हुई हूँ
अभी बात करने का भी मन नहीं है।।
मेरे ऐब केवल दिखाता है मुझको
वो दरपन ही है कोई दुश्मन नहीं है।।
घटाएं बरसकर कहीं और हो लीं
मेरे पास लेकिन वो साधन नहीं है।।
भले झीनी-बीनी है चादर हमारी
मगर ताने बाने में उलझन नहीं है।।
है रिमझिम तो पिछले बरस ही ही लेकिन
मेरे मन के सावन का वो मन नहीं है।।
— माधुरी स्वर्णकार