गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वो दीवानगी क्या जो रोशन नहीं है
मुहब्बत मुहब्बत है बंधन नहीं है।।
उसी के ख्यालों में खोई हुई हूँ
अभी बात करने का भी मन नहीं है।।
मेरे ऐब केवल दिखाता है मुझको
वो दरपन ही है कोई दुश्मन नहीं है।।
घटाएं बरसकर कहीं और हो लीं
मेरे पास लेकिन वो साधन नहीं है।।
भले झीनी-बीनी है चादर हमारी
मगर ताने बाने में उलझन नहीं है।।
है रिमझिम तो पिछले बरस ही ही लेकिन
मेरे मन के सावन का वो मन नहीं है।।
— माधुरी स्वर्णकार

माधुरी स्वर्णकार

शिक्षा : Bsc, biology आधुनिक समय के संघर्षों से जूझते हुए नारी मन की अभिव्यक्ति को अपने काव्य में समाहित कर आपने पिछले वर्षों में काव्य में उल्लेखनीय कार्य किया है । कई साझा संकलनों का संपादन किया । और कई साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ।विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित । एक ग़ज़ल संग्रह शीघ्र प्रकाश्य प्रकाशित कविता संग्रह- "उद्गम से संगम तक"