बाल कविता

पंखा

तीन पंखुड़ी जब मिल जाएं,
   सरपट सरपट दौड़ी जाएं।
     दौड़ दौड़ कर हवा चलाएं,
     हवा हमे ये मिलती जाए।
    नन्ही गुड़िया हवा ये पाए
     हवा चले तो निंदिया आए ।
     इसको पंखा कहते हैं ,
     हर घर में ये रहते हैं ।
— डॉ . कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव

डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव

पिता का नाम-श्री बनवारी लाल श्रीवास्तव शिक्षा -एमएससी ,बीएड, पीएचडी लेखन विधा- कैरियर आलेख ,बाल साहित्य सम्प्रति- शासकीय शिक्षक अन्य -स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन राव गंज कालपी ,जालौन उत्तर प्रदेश पिन 285204 मोबाइल नंबर945131813 ईमेल [email protected]

One thought on “पंखा

  • चंचल जैन

    बहुत सुन्दर।सादर 

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