माँ
माँ ! अनुपम उपहार दिया है।
निश्छल प्यार अपार दिया है।।
करुणासिंधु तुम्हीं गंगाजल,
तुम्ही आदिगुरु ईश्वर छाया।
अंक तुम्हारा पाकर मैंने,
तीन लोक का सुख सब पाया।।
चारों धाम समाये जिसमें,
मृदु सुरभित संसार दिया है।।
माँ अनुपम •••••••
खेल – खेल में हँसते – गाते,
नैतिकता का पाठ पढ़ाया।
निर्मलता तन-मन में भरकर,
सम्बन्धों का मान बढ़ाया।।
प्रीति नीति आदर्श सिखाकर,
जीवन को विस्तार दिया है।।
माँ अनुपम••••••
अहसासों का नर्म बिछौना,
वासंती पुष्पों सी माला।
चंदन की शीतलता जैसी,
हँसकर पी लेती दुख-हाला।।
अमिय- स्रोत तुम जीवनदायी,
हँसें ‘अधर’ अधिकार दिया है।।
माँ अनुपम••••
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’