आलम यही रहा तो निश्चित तौर पर खतरे की घंटी बजनी है
देश में कोरोना काल में जो तबाही मची है उसके चलते आरएसएस व राजनीतिक सत्ता संभालने वाली उसकी बेटी के रूप में पहचानी जाने वाली भारतीय जनता पार्टी को अब यह समझे का समय आ गया है कि लोगों का धु्रवीकरण करके सत्ता हथियाना एक बात है और सत्तारूढ़ होने पर देश को चलाना दूसरी।
लेकिन दूर्भाग्य है कि महामारी के इस भयानक दौर में भी आरएसएस व भाजपा ने अपनी नीति और नियत में बदलाव नही किया है। वे आज भी लोगों को धर्म की अफीम देकर नशे में चुर रखना चाहते है। जो लोग नशे के आदी नही है उनके बीच हिंदू-मुस्लिम का जहर घोल कर उन्हें मार देना चाहते है।
मतलब साफ है कि ये अब भी समझने को तैयार नही है। सत्ता हासिल करने के बाद भी संगठन की खोखली बातों पर ही अमल कर रहे है जबकि भाजपा अब सत्ता में है। संगठन और सत्ता में जमीन आसमान का अंदर है। संगठन की रीति नीति उसकी कार्यप्रणाली सत्ता को हासिल करने की होती है और सत्ता का काम लोगों के दुख -दर्द को समझ कर उससे निजात दिलाने का होता है।
पर सच तो यही है कि भाजपा में जो लोग सत्ता का मजा चख रहे है वे जनता को सुख देने के बजाय तकलीफ में ड़ालने का काम कर रहे है। इस बात की तस्दीक करने के लिए हमें वजीरे आजम नरेन्द्र मोदी के कुछ फैसलों की तरफ नजरें इनायत करना चाहिए। मोदी सरकार व भाजपा की यह वे चंद नीतियां है जो महामारी से ध्यान हटवाकर उसे हिंदू- मुस्लिम का जामा पहनाने की कोशिश की जा रही है। मोदी सरकार के हाल के फैसले भी इस बात को सच साबित करते है कि वे बीमारी पर ज्यादा ध्यान देने की बजाय महामारी का सांप्रदायिकरण कर खतरनाक रूप देना चाहते है ताकि अपनी नाकामयाबियों को छूपा सके।
हालाकि होना ये चाहिए था कि वे एक सशक्त व ईमानदारी प्रधानमंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते व इस बीमारी पर अंकुश लगाने की पहल करते। लेकिन ऐसा नही किया। महामारी को बढ़ावा देने के लिए उनने हिंदुओं की भावना से भावनात्मक खिलवाड़ कर कुंभ मेले जैसे धार्मिक आयोजनों पर प्रतिबंध लगाने की बजाय उन्हें विस्तारित रूप देकर अनुमति प्रदान की। कहानी यहीं खत्म नही हो जाती है। एक दल विशेष के पीएम होने के नाते उनने चुनावी सभाओं में बढ़- चढ़ कर हिस्सा लिया। लाखों-लाख लोगों की सभाएं कर कोरोना महामारी को बुलावा देने का काम किया। अब आलम यह है कि लाखों की तादात में लोग बेसमय मौत के गाल में समा रहे है।
इलाज के दौरान टूटती सांसों को न ऑक्सीजन मिल रही है न ही दवाइयां। दवा के अभाव में बेसमय ही लोग स्र्वग को सिधार रहे है। तिस पर झुठ का तंत्र खड़ा करके एक झुठी साख बनाने के तमाम जतन किए जा रहे है। मतलब दिन-दुखियों को सहयोग की बजाय सब्जबाग दिखा कर उसे मुर्ख बनाने का काम किया जा रहा है।
असल में देश में इस समय जिस तरह के हालात निर्मित हुए है और जो घटनाएं घटी है उनको देखते हुए शीर्ष नेतृत्व को यह समझना होगा कि 2019 की जीत के बाद जिस तरह से सरकार चल रही है, उसमें अब सुधार की काफी जरूरत है।
इस पहल में सबसे पहले तो इस सच को स्वीकार करना होगा कि वह लोगों को अदद ऑक्सीजन तक मुहैया नही कर पाई है। अब यथा स्थिति का सामना कर उसके मार्ग में आने वाली बाधाओं को हटाना होगा। अब जनता ये भी जानना चाहती है कि जब इसी साल सरकार ने कोरोना संकट को संभालने का संकेत दिया था तो फिर उसका काम धरातल पर क्यूं नही दिखाई दे रहा है।
केन्द्र सरकार के सजग रहने के बावजूद इतने कम समय में देश घोर स्वास्थ्य संकट कैसे झेल रहा है। असल में कोरोना की दूसरी लहर ने मोदी सरकार के झूठ- सच का पर्दा फास कर दिया है। लोग मदद की निगाहों से प्रधानमंत्री मोदी की तरफ देख रहे है और मानो वे है कि कह रहे थे कि-आत्मनिर्भर बनो। मोदी सरकार के इस तरह के व्यवहार से साफ है कि हम थे जिनके सहारे वे हुए ना हमारे।
इस भयावह स्थिति के लिए लोग अब सीधे-सीधे मोदी सरकार से कहीं ज्यादा नरेन्द्र मोदी को दोषी मान रहे है। जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी से उम्मीदें थी वे ही निराश नजर आ रहे है। ऐसा ही एक उदाहरण आगरा शहर से सामने आया है। आगरा में अमित जायसवाल नाम का एक शख्स था, वह मोदी का परम भक्त था हाल ही में उसकी कोरोना से जान चली गयी। अमित को खुद मोदी टिवट्र पर फालो करते थे। जब यह युवा कारोबारी कोविड़ से ग्रसित हुआ तो उसकी बहन ने अस्पताल में भर्ती होने पर पीएमओ, नरेन्द्र मोदी और योगी आदित्यनाथ को टैग कर मदद मांगी लेकिन सब जगह से निराशा ही हाथ लगी।
अब अमित इस दुनिया से रूखसत हो चुका है। अमित के स्वर्गवासी होने के कुछ दिन बाद ही उसकी मां भी इस जहां को छोड़ कर चल बसी। अमित के दिल में नरेन्द्र मोदी को लेकर जो दीवानगी थी हम थोड़ा उसके बारे में भी जान लेते है। अमित के सिर पर नरेन्द्र मोदी का भूत इस तरह से सवार था कि वे पिछले कई सालों से अपनी कार के पीछे मोदी का पोस्टर लगा कर बाजार में घूमते रहते थे। वो पीएम की हर अदा का कायल था। नरेन्द्र अच्छा करे या बुरा करे उसे हर रूप में स्वीकार कर अच्छा ही मानता था। अमित ने अपने टिवटर हैंडि़ल पर लिख भी रखा था कि उसे प्रधानमंत्री फालो करते है। इस संबंध में एक वेबसाईट ने तो उसके टिवटर हैंडिल का स्क्रीन शॉट भी प्रकाशित किया था। मजेदार बात ये है कि अब वह टिवटर हैंडि़ल अस्तित्व में नही है। उसे डिलीट किया जा चुका है।
बहरहाल ये भी बताते चलूं कि अमित भाजपा और आरएसएस का भी सच्चा सिपाही था। वह एक सच्चे हिंदु झंडाबरदार की तरह पिछले साल न केवल अयोध्या गया था बल्कि उसने पूरे शहर में राम मंदिर का काम शुरू हो रहा था तब अपनी तरफ से अयोध्या में एलईड़ी बैनर भी लगवाए थे। इन पर राम जन्मभूमि की इबारत चमक रही थी। अमित को आगरा में आरएसएस से जुड़े लोग बहुत मेहनती स्वंय सेवक के रूप में जानते थे। पिछले साल उसने आगरा में लॉकडाउन के समय एक ई-शाखा का आयोजन कर संघ-भाजपा के तमाम छोटे बड़े नेताओं की वाहवाही भी खूब लुटी थी।
सच तो यह है कि अमित कट्टर हिंदुवादी था। उसने अपने टिवटर हैंड़ल पर जो तस्वीर लगा रखी थी वह उसकी उग्रता को खुलकर बयां कर रही थी। ये तस्वीर धनुर्धारी राम की है जो युद्ध की मुद्रा में धनुष पर बाण चढ़ाए रखे है। इतना ही नही बगल में अमित ने एक कैप्शन भी लिख रखा था कि- वी कांकर, वी कील। यानी हम विजय प्राप्त करते है हम वध करते है। ये कैप्शन अतिम की हिंसात्मक प्रवृत्ति को साफ बयां कर रहा था। हालाकि कह सकते है कि वह अंधभक्त था। पर उसकी ये अंधभक्ति भी उसके कोई काम नही आई। एक युवा बेसमय मोदी की स्वास्थ्य से संबंधित कुनीतियों के चलते मौत की भेंट चढ गया। और हां यह भी जान ले कि अमित मुस्लिम नही एक सच्चा और कट्टर हिंदु था।
अब अमित के चले जाने के बाद उसकी कार के पीछे से उसकी बहन सोनू ने पोस्टर नोच कर फेक दिया है। सोनू का ये गुस्सा कितना जायज है या नाजायज है ये फैसला तो आप पर छोड़ा लेकिन उसने जो बातें कही है उन पर एक बार गौर फरमाना जरूरी है। वे कहती है मेरा भाई अमित और मेरी मां 19 अप्रैल को कोरोना पाजिटिव पाए गए थे। दोनों को आगरा में भर्ती कराने का प्रयास किया गया लेकिन सफलता नही मिली। नाकाम रहने पर मथुरा ले जाकर वहां के नयति अस्पताल में भर्ती किया गया। 25 अप्रैल को इन दोनों की हालत बिगडऩे लगी तो अस्पताल प्रबंधन ने रेमडि़सिविर इंजेक्शन का इंतजाम करने को कहा। तभी सोनू ने अपने भाई के टिवटर अकाउंट से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को गुहार लगाई।
माईसेल्फ सोनू अलग
मिस्टर अमित जायसवाल्स सिस्टर
दिज इज टु इनफार्म यू दैट वी आर फेसिंग इश्यूज रिगार्डिंग अरेजमेंट ऑफ रेमडि़सिविर एण्ड ट्रीटमेंट।
ही इज एडमिटेड इन नयति हास्प्टिल मथुरा।
वी नीड़ योर हेल्प।
ही इज नॉट वेल।
इस टिवट् के साथ एट द रेट पीएमओ इंडिय़ा, एट द रेट नरेन्द्र मोदी, एट द रेट मॉय योगी आदित्यनाथ को टैग किया गया।
अब सोनू बेहद उदासी व गुस्से भरे लहजे में कहती है कि इतनी जगहों पर गुहार लगाने के बाद भी कोई मदद नही मिली। अमित की बहन सोनू का गुस्सा शायद वही गुस्सा हो सकता है जिसे फिल्म अभिनेता अनुपम खेर ने एक टीवी चेनल को साक्षात्कार देने के दौरान, यह कहते हुए जाहिर किया कि-जीवन में छवि बनाने से ज्यादा और भी बहुत कुछ है। साक्षात्कार के अंतिम समय में याने जाते-जाते खेर का यह कह देना कोरोना बीमारी के प्रबंधन में मोदी सरकार की चुक को सीधे-सीधे सामने लाता है। ये वही खेर है जिनकी एक हालिया टवीट् बड़ी मशहूर हुई थी। इस टवीट् में उनने साफ कहा था कि कुछ भी कर लो आएगा तो मोदी ही।
कहने का मतलब साफ है कि नरेन्द्र मोदी, संघ व भाजपा को हिंदू-हिंदुत्व और हिंदुस्तान के युवाओं से कोई लेना देना नही है। इनको सत्ता हासिल करने के लिए बस युवाओं का भावनात्मक शोषण करना है। जो युवा अमित की तरह अंधभक्त है उन्हें बस इतना भर सोचना समझना है कि सत्ताधारियों को सत्ता बचाए रखने भर से मतलब होता है, बाकी किसी से नही। गर अब भी युवा इस बात पर गौर नही फरमाएंगें तो अमित की मौत मारे जाएंगे। इस समय वजीरे आजम मोदी ने देश में जिस तरह से स्वास्थ्य आपातकाल के हालात पैदा किए है उसे भी युवाओं को समझना होगा। यह वह कृत्य है जो अक्ष्मय है।
हालिया घटनाएं भी साबित करती है कि मुद्दों को संभालने में मोदी सरकार नाकाम रही है और उनमें सुधार की काफी जरूरत है। वे लंबे समय तक किसान आंदोलन का भी कोई समाधान नहीं निकाल पाएं। महीनों से चल रहे किसानों के विरोध को तोडऩे में मोदी की अक्षमता चिंता का ही सबब बन कर ही उभरी है। भले ही कृषि कानूनों को लेकर हो रहे इन प्रदर्शनों में ज्यादातर पंजाब-हरियाणा के किसान हों, लेकिन हालिया चुनाव वाले चारों राज्यों में हुए सर्वे से साफ जाहिर हो गया है कि बड़ी संख्या में लोग चाहते हैं कि कृषि कानून वापस हों। हालांकि सर्वे केवल चार राज्यों का मूड बता रहे हैं, लेकिन दूसरे राज्यों में भी कृषि कानूनों पर पॉपुलर मूड अलग होने का कोई कारण नहीं है।
यह सब दर्शाता है कि मोदी व भाजपा को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। और इस समय सबसे पहले आमजन को राहत देने के लिए मोदी सरकार को कोरोना की दूसरी व तीसरी लहर का सामना करने की माकुल रणनीति बनाकर संसाधनों का उचित प्रबंध करने पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके साथ ही आवधिक चुनौती को स्वीकार कर लंबी अवधि की रणनीति शीघ्र ही बने ऐसा कुछ प्रबंध करना चाहिए। सिर्फ चुनावी सफलता- असफलता ही मोदी व भाजपा की चिंता का सबब नहीं होना चाहिए।
भाजपा व मोदी को जितनी जल्दी हो सके इस बात को भी स्वीकार कर लेना चाहिए कि झूठ की बुनियाद पर खड़ी की गई ईमारत लंबे समय तक खड़ी नही रह सकती है। खासकर सत्ता के बावले नरेन्द्र मोदी को यह समझना होगा कि वे जिस हठधर्मिता को लेकर शासन चला रहे है वह देश की जनता को तबाही की ओर ही धकेल रहा है।
अब देश में मोदी ही नही बल्कि हिंदुत्व के तेजतर्रार नुमांइदें के रूप में पहचान बनाने वाले योगी आदित्यनाथ की नाकामयाबियां भी उनके ही मंत्रियों द्वारा सामने लायी जा रही है। हाल ही में यूपी के सीएम होने के नाते योगी को केन्द्र के एक मंत्री और उनके ही मंत्रिमंडल मंडल के मंत्रियों ने नाराजगी से भरी चिठठ्यां लिखी है। यह बात दीगर है कि योगी ने लिखी गयी उन चिठिठ्यों को दबाकर जनता की नजरों से हटा दिया गया है लेकिन हम आप सब अच्छे से जानते है कि जब भी कोई सवाल करता है तो उसका मतलब क्या होता है।
इस समय सबसे चिंताजनक बात तो यह है कि मोदी और उनकी पार्टी के लोग सच को छूपाने की भरसक कोशिश कर रहे है। वे कितनी भी कोशिश करे लेकिन इन दिनों सोशल मिडिय़ा पर आम जनता का गुस्सा मेादी व भाजपा के खिलाफ खुलकर सामने आ रहा है। इसमें दो राय नही है कि इनके विरोध में जो कटु बयान सामने आ रहे है वह कोई नई बात है लेकिन इस बार नई बात यह है कि मोदी, संघ, भाजपा व योगी के समर्थन में जो टवीट् और पोस्ट उनके समर्थकों के आ रहे थे अब वह उतनी तादात में नही आ रहे है। अब समर्थक भी पहले की तरह पुरजोर तरीके से अपनी बात नही रख पा रहे है।
मतलब साख का टोटा भी होने लगा है। और साख का यह टोटा खुलकर सामने भी आने लगा है। बड़ी संख्या में लोगों का मोदी और उनकी पार्टी से विश्वास उठने लगा है। आलम यह है कि सबसे ज्यादा लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोदी, दिन-ब-दिन लोकप्रियता खोते जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि लोग कोरोना के लिए ही उन्हें दोषी मान रहे हैं, बड़ी संख्या में लोग मानते हैं कि केंद्र सरकार ने संकट के समय में ईमानदारी से काम नही किया और चुनावी रैलियों के साथ हिंदुओं का धार्मिक तुष्टीकरण करने में जुटी रही।
देश में जिस तरह के हालात निर्मित हो रहे है उसे देखते हुए साफ है कि संघ व भाजपा को मोदी सरकार पर इस बात के लिए दबाव बनाना चाहिए कि वे अपनी हालिया नीतियों पर पुनर्विचार करे। ऐसे समय में, जब मोदी सरकार की रेटिंग गिर रही है, संघ व भाजपा को अपने कुछ विवादास्पद फैसलों पर भी पुनर्विचार करना चाहिए। हिंदु मुस्लिम से उपर उठ कर आमनज को राहत देने वाली नीतियों पर अमल करना चाहिए।
पिछले कुछ सालों का हासिल ये बता रहा है कि मोदी सरकार ने स्वास्थ्य को लेकर थोड़ी भी सजगता दिखाई होती तो शायद कोरोना काल में इतनी बड़ी तबाही नही मचती। मोदी और भाजपा अभी भले ही सत्ता के नशे में चुर होकर अपनी गलतियों को स्वीकार ना करे पर सच तो यही है कि अगर यही आलम यही रहा तो आगामी समय में निश्चित तौर पर खतरे की घंटी बजने वाली है।
— संजय रोकड़े
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नोट- लेखक सम-सामयिक मुद्दों पर कलम चलाते है और पत्रकारिता जगत से सरोकार रखने वाली पत्रिका मीडिय़ा रिलेशन का संपादन करते है।