हृदय की धड़कन
आज हृदय की धड़कन मेरी ठहर गई चुपचाप,
ध्यान दिया जो मैंने तो करती करुण विलाप।
कहती बहुत भार दे डाला अब तो सहा न जाय,
कृपा करो अब मेरे ऊपर रुक रुक सांसे जाए।।
ईश्वर ने मुझको पकड़ाई डोर थी जीवन की,
धीरे धीरे चलना कहते राह है फिसलन की।
मैने भी कोशिश की एक पग गलत न रखूं,
कोमल काया का चालक मैं इसे निरोगी रखूं।।
किन्तु मुझे पीछे करके ये मन मालिक बन बैठा,
उल्लासित ये रहे हमेशा चैन मेरा हर बैठा।।
मुझे चोट पहुंचाना अपना कारोबार बनाया,
इसके कहने पर काया ने हृदय रोग अपनाया।।
मन ने मानस पर कब्जा कर मार्ग किया अवरुद्ध,
धड़कन मेरी शिथिल पड़ रही कार्य न होता शुद्ध।
मन का कहना मानस करता रहा न तन का ध्यान,
हृदय की धड़कन भटक रही मिलती न थी राह।
मन बहलाता मन फुसलाता मन ही है घबराता,
मनमौजी जीवन जीकर देता भार हृदय को जाता।
बढ़ते जा रहे रोग है तन में हृदय कहां तक झेले,
विश्राम अब करना चाहता जीवन कहां धकेले।।
— सीमा मिश्रा