नमस्ते : हमारी पुरातन परंपरा
भारतीय संस्कृति, धर्म और जीवन शैली की श्रेष्ठता की पैरवी करने पर अनेक बुद्धिजीवियों द्वारा बिना किसी संकोच के तुरंत ही अति राष्ट्रवादी होने के आरोप लगा दिए जाते हैं किंतु वस्तुस्थिति यह है कि समय-समय पर आधुनिक विज्ञान द्वारा भारतीय आचार-विचार, धर्म, ज्ञान और जीवनशैली की वैज्ञानिकता प्रमाणित की जाती रही है।
वर्तमान संदर्भ में कोरोना वायरस के संक्रमण ने अभिवादन के भारतीय पुरातन प्रतीक “नमस्ते” को वैश्विक स्तर पर स्वतः ही प्रासंगिक बना दिया है। विश्व मे लोग कोरोना संक्रमण के डर से ही सही किंतु हाथ मिलाने, गले मिलने , चुम्बन आदि के स्थान पर दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करके एक दूसरे का अभिवादन कर रहे हैं।
मजे की बात ये है कि इसी बहाने पश्चिम की अंधी नकल को तरक्की की पहली शर्त मानने वाले एक बहुत बड़े भारतीय तबके को निश्चित ही अपनी जड़ों की ओर लौटने का एक अवसर अवश्य मिला है, यदि वे लौटना चाहें तो।
इतिहास :
भारत और पूरे एशियाई महादेश में नमस्ते एक प्राचीन परंपरा है। पुरातात्विक साक्ष्यों पर नज़र डालें तो सर्वप्रथम नमस्कार की मुद्रा में एक पुरुष साधक की मृण्मूर्ति (चित्र देखें) हमे सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त होती है जिसका समयकाल संभवतः 2700ई•पू•-2100 ई•पू• के आसपास माना जाता है और इसे वर्तमान में राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली में देखा जा सकता है। उक्त मूर्ति को आधार मानकर हाथ जोड़कर अभिवादन करने ( नमस्ते ) की भारतीय परंपरा को लगभग 4000-4500 वर्ष प्राचीन तो निस्संदेह माना ही जा सकता है।
अगर लिखित साक्ष्यों को देखें तो अभिवादन के लिए नमस्ते का प्रथम साक्ष्य हमे *ऋग्वेद* में मिलता है जो लगभग 3500 वर्ष पूर्व लिखा गया । नीचे दिए सूक्त पर दृष्टिपात करें-
“नमो महादभ्यो नमो, नमो अर्भ्यकेभ्यो
नमो भुवभ्यो नमः, आशिनेभ्यो”
(ऋग्वेद १/२७/१३)
● अर्थात- ये मनुष्यो ! महान को नमस्ते करो, युवकों को नमस्ते करो, वयोवृद्धों को नमस्ते करो, सभी विद्वानों को नमस्ते करो।
प्राचीन बौद्ध साहित्य में हमे *धम्मपद* में भी नमस्कार करने के साक्ष्य मिलते हैं, यहां देखें कि-
“यम्हा धममं विजानेय्य सम्मासंबुद्धदेसितं ।
सकच्चम तं नमस्सेय अग्निहुत्तं व ब्राह्मणों।”
● अर्थात- जिस(उपदेशक) से बुद्ध द्वारा उपदेशित धर्म(धम्म) को जानें, उसे सत्कारपूर्वक नमस्कार करें (जैसे ब्राह्मण अग्नि को करते हैै)
-निधि सजवान-