सामाजिक

लडकियों को तहजीब सिखाएं- मायके पक्ष 

हमारे सनातन धर्म में कहा गया है लड़की का सुहागन होना और ससुराल में होना शुभ है ,और संस्कारिक मर्यादा भी।लेकिन आज कल के माॅम डैड ने इसे वर्बाद कर रखा है।सबसे ज्यादा विकट स्थिति का माध्यम फोन का घंटो तक आदान प्रदान होना।जिस किसी घर में ऐसी बीमारी लगी है वह घर रिश्ते की लिहाज से दम तोड़ चुके हैं । जबसे यह आधुनिक फोन का प्रचलन बढा है मायके का हस्तक्षेप बढता गया है। जिसे कोई खुद्दार पति शायद बर्दाश्त नहीं करता और यही सम्बन्धों की एक दीवार खड़ी करती है जो आये दिन अदालतें थाने और विभिन्न आयोग के बढ़ती फाइलों में दम तोड़ रही है।
प्राचीन काल में ऐसा बिल्कुल नहीं था रिश्तों की एक बुनियाद होती थी ।मायके पक्ष कभी भी नादानी या ओछी बात नही करते थे बल्कि अपने बच्ची को समझाते थे ।जिससे रिश्ता प्रगाढ और निरंतर बना रहता था।जब कोई खास आयोजन में उनसे राय मांगी जाती थी तो वे मशवरा देते थे आज बिल्कुल अलग है ।आज दाल में नमक अधिक हो गया अगर पति ने डांट दी तो पति को डाटने के लिए प्रोग्राम बनाया जाता है जिसका माध्यम भी मोबाइल ही है जबकि पहले लोग हंसकर उड़ा डालते थे। यही फर्क है आज के इस नयी पीढी में जिसकी वजह से नौबत तालाक तक पहुंच जाती है।घरेलू हिंसा और प्रताड़ना की सारे हदें पार कर चुका यह समाज अब पतन की कगार पर खड़ा है जिसकी वजह है एकल मानसिकता से ग्रसित लडकियां शादी के बाद सिर्फ एकल परिवार को बढावा दे रही है।
ऐसा नही कि एकल होने के बाद यह सिलसिला समाप्त हो जाता है अपितु बढ़ जाता है।कई पुरूष चुपचाप सहकर जीवन निर्वाह कर लेते है तो कई डिप्रेशन के शिकार हो जाते है।क्योंकि कलह की निरंतरता बनी रहती है।आज अदालतों में सबसे ज्यादा मुकदमे तालाक के है,महिला थाना में परिवारवाद की केस की संख्या इतनी ज्यादा है कि नम्बर आने में महीनो लग जाते है।महिला आयोग मानवाधिकार आयोग में भी प्रायः यही स्थिति है।
अब सवाल उठता है ऐसा क्यों है ऐसा इसलिए है क्योंकि “”एको अहम द्वितीयो नाश्ती। की मानसिकता जब पनपने लगती है तो सामने वाला बडा हो बुजुर्ग हो अथवा गेस्ट हो आप तरजीह नही देते और अपनी बात को सबसे उपर रखते है ।आप समझने की कोशिश नही करते कि आपकी बच्ची सही है या दामाद आप सिर्फ और सिर्फ अपनी एको हम द्वितीयो नाश्ती की परिभाषा को परिभाषित करते है जिससे सम्बन्ध विच्छेद होता है।
 युग कितना भी बदल जाय पर संस्कार तो घर और परिवार ही देता है और जब एकल परिवार ही रहेगा तो संस्कार कहां से आएगा ।यह आज की वास्तविकता है जिसे स्वीकार करना होगा।रिश्ते करने से पहले यह एक आवश्यक पहलू है जिसे हरकोई देखता है। मायके का बढ़ता प्रचलन विगत दशको से खूब फल फूल रहा जरूरत से ज्यादा उनकी भागीदारी ससुराल पक्ष में भी कटुता पैदा करता है ।यह भी घरेलू हिंसा का एक कारण है।कारण अनेको हैं जिसे समझने की जरूरत है।
देखा जाय तो संयुक्त परिवार का विधटन ऐसे तमाम परेशानियों को जन्म दे गया जो आज समाज में अभिशाप बना हुआ है। हमारे हिन्दु समाज में तालाक महिला थाना या महिला आयोग नही हुआ करती थी । इन सभी चीजो को बढ़ती घटनाओ को देखकर समयानुसार बनाया गया है।अलग कानून बनाकर महिला को सशक्त किया गया है ।लेकिन ऐसी सशक्तिकरण का क्या जहां पुरूष प्रताडित होते रहे।
आज महिला प्रताड़ना से ज्यादा पुरूष प्रताडित किए जाते है ।पुरूष की हालत ऐसी है कि वह चाहकर भी अपनी बात किसी से नही करता जबकि हकीकत तो सभी जानते हैं ।आखिर सरकार द्वारा बनाये गये कानून का कोई सदुपयोग करे यह सुनिश्चित भी तो नही क्योंकि शातिर दिमाग दुरूपयोग की ज्यादा सोच रखता है। आज ऐसे करोडो पुरूष है जो किसी न किसी रूप से अपनी पत्नी अथवा किसी महिला द्वारा प्रताडित है। क्या सरकार पुरूष आयोग बनाएगी ? वैसे कईयों को महिला कानून के गलत इस्तेमाल पर दंड भी दिया गया है लेकिन इसकी तादाद कम है।इसलिए मां बाप लड़कियों को मन विषैला करने के वजाय ससुराल में रहने का तरीका सीखाना चाहिए।तभी इन अदालतों का बोझ कम हो सकेगा।
— आशुतोष 

आशुतोष झा

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