पहचान
खिड़कियों से आती हर हवा
शुद्ध नहीं होती,
सांसे रोक देतीं हैं ,कभी कभी
जिस तरह से शुद्ध नहीं होता ,
हर पानी
जिन्दगी छीन लेता है ,गला तर करने से,
समंदर जल नहीं बन सकता
वैसे ही विषैली हवा ,सांस नहीं बनती
बंद करनी पड़ती हैं खिड़कियां
हवा की आग सी गरमाहट से
मजबूरियां ,जिन्दगी छीन लेती हैं
सम्हलना आना चाहिए
रुखसत होने से पहले
कुछ छोड़ दो कुछ भींच लो
आगोश में अपने
सुबह तक सहलाइये
सपनों को अपने
जो बच गये वो साथ हैं
जो छूट गये वो गैर थे।
हवा है ,खिड़कियाँ हमेशा खुली नहीं रखी जाती
जिन्दगी देने के साथ दुर्गंध भी ले आती है।
— शिखा सिंह