कविता

पहचान

खिड़कियों से आती हर हवा

शुद्ध नहीं होती,

सांसे रोक देतीं हैं ,कभी कभी

जिस तरह से शुद्ध नहीं होता ,

हर पानी

जिन्दगी छीन लेता है ,गला तर करने से,

समंदर जल नहीं बन सकता

वैसे ही विषैली हवा ,सांस नहीं बनती

बंद करनी पड़ती हैं खिड़कियां

हवा की आग सी गरमाहट से

मजबूरियां ,जिन्दगी छीन लेती हैं

सम्हलना आना चाहिए

रुखसत होने से पहले

कुछ छोड़ दो कुछ भींच लो

आगोश में अपने

सुबह तक सहलाइये

सपनों को अपने

जो बच गये वो साथ हैं

जो छूट गये वो गैर थे।

हवा है ,खिड़कियाँ हमेशा खुली नहीं रखी जाती

जिन्दगी देने के साथ दुर्गंध  भी ले आती है।

— शिखा सिंह

शिखा सिंह

जन्मस्थल - कायमगंज स्नातकोत्तर- के.एन.कालेज कासगंज. प्रकाशन- विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में आलेख एवं कविताएँ प्रकाशित जैसे - लखनऊ से, उत्कर्ष, लखनऊ से रेवान्त पत्रिका ,जनसंदेश टाईम्सअखबार,अग्रधारा पत्रिका, अनुराग ,अनवरत, कविता संग्रह, भोजपुरी पंचायत, लोक चिंतक कवि हम - तुम कविता संग्रह और अन्य पत्रिकाओं में भी प्रकाशित सृजन पोर्टल दिल्दी बुलेटिन पोर्टल अन्य !! सम्पर्क-जे .एन.वी.रोड़ फतेहगढ़ फर्रुखाबाद (उ प्र,) पिन कोड- 209601 e-mail [email protected]