सांवली चंचल चितवन में
नेह भींगा समर्पण लिये,
प्रीत के दीप जलाये,
तुम ने निंदयारी पलकों में।
महक जाये सूनी बगिया,
खुले खुशबुओं के दरीचे।
मेरी प्रीत का जहां आबाद है,
कजरारी पलकों के नीचे।
मेरे ही सपनें सजाये,
तुम ने निंदयारी पलकों में।
प्रीत के दीप जलाये
तुम ने निंदयारी पलकों में।
तुम्हारे सुर्ख लबों पर,
मेरे गीत यूं मचलते है।
जैसे बहारों के मौसम में,
हसीं गुलाब खिलते है।
वफा के फूल खिलाये,
तुम ने निंदयारी पलकों में
प्रीत के दीप जलाये
तुम ने निंदयारी पलकों में।
बोलती है झुकी झुकी नजरे,
मौसम गुलाबी लगता है।
जानेमन ये भोला चेहरा,
मुझ को किताबी लगता है।
कैसे कैसे राज छुपाये,
तुम ने निंदयारी पलकों में
प्रीत के दीप जलाये
तुम ने निंदयारी पलकों में।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”