जी हाँ मैं कविता हूँ
विचारों का यह बड़ा मंथन, मस्तिष्क में हलचल मचाता है,
अपनी भावनाओं के पिटारे से, फ़िर विचारों को उठाता है,
कोई इतिहास के पन्नों का, वर्तमान से परिचय कराता है,
कोई उज्जवल भविष्य के, सुंदर सपनों से हमें मिलाता है,
कोई नारी को सर्व गुण संपन्न आकर्षक अप्सरा दिखाता है,
तो कोई नारी की, लुटती आबरू के किस्सों को सुनाता है,
कोई सैनिकों की वीर गाथाओं से प्रेरणा का संदेश लाता है,
कोई शहीदों की कुर्बानी लिख, देश पर मरना सिखाता है,
जीवन का हर एक पहलू, मेरे अस्तित्व में ही तो समाता है,
कभी हंसाता है, कभी रुलाता है और कभी ये गुदगुदाता है,
समाज का पारदर्शी आईना मैं, सच्चाई सबको दिखाती हूँ,
जी हाँ, मैं कविता हूँ लिखी और मंच से पढ़ी भी मैं जाती हूँ,
परिचय संक्षिप्त पर रचनाओं का ख़जाना मुझमें समाया है,
ना जाने कितने रचनाकारों ने, मेरी कोख़ से जन्म पाया है,
विचारों का अथाह सागर उनके मन मंदिर में मैं बनाती हूँ,
और किताबों के पन्नों में सज संवर कर प्रस्तुत हो जाती हूँ,
तरह तरह की अच्छी-बुरी, घटनाओं से भरा यह संसार है,
जागरूकता लाना ही मेरा कर्त्तव्य और ये ही मेरा प्यार है।
-रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)