कथा साहित्यकहानी

वो आधा घंटा

आज सुबह जब पवित्रा टहलने के लिए निकली तब उसे फूल बानो रास्ते में मिल गई। फूल बानो उसका नाम नहीं था किंतु सोसाइटी में फूल बांटती थी इसलिए सब उसे फूल बानो कहकर बुलाते थे। एकदम हंसमुख चेहरे वाली फूल बानो को देखकर सभी को लगता था कितनी ख़ुश रहती है यह, लगता है कभी भी जीवन में इसकी दुःखों से मुलाकात हुई ही नहीं।

पवित्रा ने कुछ देर रुक कर उससे बातचीत करना शुरू किया और पूछा, “कितने घरों में फूल देती हो?”

“पच्चीस तीस घर होंगे मैडम”

“तो कितना कमा लेती हो फूलों से?”

“दो-तीन हज़ार कमा लेती हूँ मैडम”

“इतने में गुज़ारा.  . .अच्छा अच्छा तुम्हारा पति भी तो कमाता होगा ना?”

“नहीं मैडम वह तो कब का गुज़र गया”

“अरे माफ़ करना”

“मैडम माफ़ी क्यों मांग रही हैं आप। कोई बात नहीं मैडम, कारीगर था, मकान में प्लास्टर करता था। एक दिन नीचे गिर गया और वहीं दम तोड़ गया, पर अच्छा हुआ मैडम। यदि बच जाता, बिस्तर पर चला जाता तो बड़ी मुसीबत हो जाती। भगवान जो करता है अच्छे के लिए ही करता है। चला गया वरना दुःख और मुसीबत में कौन साथ देता है भला। हमारे पास इलाज़ के लिए कहाँ लाख दो लाख होते हैं, पास में जो थोड़ा बहुत था, वह भी इलाज़ में ख़त्म हो जाता। भगवान ने उस मुसीबत से तो बचा लिया।

“पवित्रा हैरान थी उसके मुँह से कड़वी सच्चाई सुनकर, जो वह कितनी आसानी से साफ़ दिल और भोलेपन से कह रही थी।

“फूल बानो तुम्हारे घर में और कोई?”

“अरे है ना मैडम, मेरा एक बेटा है मानसिक रोगी है। बुद्धि में शून्य है, खाने-पीने के अलावा उसे कुछ नहीं समझता। पर भगवान की कृपा है, गोद सूनी ना रहने दी मेरी उन्होंने। एक बेटी भी है, भगवान ने एक साथ दो दे दिए थे। शायद उन्होंने सोचा होगा कि पति मर जाएगा, बेटा बीमार रहेगा इसीलिए एक बेटी भी दे दी, कितना सोचते हैं वह सब के लिए।”

पवित्रा चौंक गई मानसिक तौर पर बेटा बीमार फिर भी भगवान की तारीफ़ ही कर रही है।

“बेटी क्या करती है?”

“मैं काम पर जाती हूँ तो बेटी उसे संभालती है। बेटी का ब्याह कर दिया था पर पति बहुत मारता था इसलिए मैंने उसे वापस बुला लिया। मार खाने थोड़ी भेजा था उसे ससुराल। पर अच्छा ही हुआ हम तीनों बड़े प्यार से रहते हैं। वह अपने भाई का ख़्याल रख लेती है, घर का कामकाज संभाल लेती है। इसीलिए मैं नौकरी कर लेती हूँ। सुबह आप लोगों को फूल दे देती हूँ।”

“अच्छा नौकरी भी करती हो?”

“हाँ मैडम एक ऑफिस में कचरा पोछा, चाय पानी, सुबह नौ से शाम के छः बजे तक। पाँच हज़ार मिल जाते हैं, सब मिलाकर आठ हज़ार हो जाते हैं।”

“इतने में तीन लोगों का गुज़ारा हो जाता है?”

“अरे बिल्कुल मैडम हम गरीबों को दो वक़्त की रोटी के अलावा चाहिए ही क्या? बढ़िया गरम-गरम रोटी खाते हैं, रात को तीनों साथ बैठकर। बिटिया सुबह डब्बे में जो भी रख देती है खा लेती हूँ, पेट भर जाता है। मेरी ख़ुद की खोली है। पति एक खोली दे गया, उसी में ख़ुशी से रहते हैं।”

फूल बानो से बात करके पवित्रा वापस घर लौट रही थी। वह मन ही मन सोच रही थी कि हम लोग छोटी-छोटी बातों में तनाव ग्रस्त हो जाते हैं। हर सुख सुविधा होने के बावजूद भी कमी ही महसूस करते रहते हैं और ज़्यादा का लालच हमारे मन से जाता ही नहीं। ख़ुश कैसे रहा जाता है, गरीब हालातों में रहने वाली फूल बानो से हमें सीखना चाहिए जो हर दुःख में ख़ुशी ढूँढ लेती है। उसने हर दुःख से समझौता कर ख़ुश रहना सीख लिया है।

अपने घर की छोटी-छोटी समस्याओं से तनाव ग्रस्त रहने वाली पवित्रा आज फूल बानो के साथ आधा घंटा बिता कर एक सकारात्मक शक्ति को अपने अंदर महसूस कर रही थी। इतनी सारी मोटिवेशनल स्पीच सुनने के बाद भी पवित्रा को आज तक वह सुकून नहीं मिला था जो आज हालातों से जूझती फिर भी ख़ुश रहने वाली फूल बानो से मिल गया और इस आधे घंटे ने उसका जीवन के प्रति नज़रिया ही बदल कर रख दिया।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
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रत्ना पांडे

रत्ना पांडे बड़ौदा गुजरात की रहने वाली हैं । इनकी रचनाओं में समाज का हर रूप देखने को मिलता है। समाज में हो रही घटनाओं का यह जीता जागता चित्रण करती हैं। "दर्पण -एक उड़ान कविता की" इनका पहला स्वरचित एकल काव्य संग्रह है। इसके अतिरिक्त बहुत से सांझा काव्य संग्रह जैसे "नवांकुर", "ख़्वाब के शज़र" , "नारी एक सोच" तथा "मंजुल" में भी इनका नाम जुड़ा है। देश के विभिन्न कोनों से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र और पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। ईमेल आई डी: [email protected] फोन नंबर : 9227560264