व्यंग्य : नफे का पड़ोसी धर्म
नफे टीवी पर पर कोरोना महामारी और उससे पीड़ित लोगों की खबरों को सुनते-सुनते जब ज्यादा दुःखी हो गया तो उसने टीवी बंद करके रिमोट को एक तरफ फैंका और अपना सर पकड़ कर विचारमग्न हो सोफे पर बैठ गया। तभी उसकी पत्नी भागते हुए आयी और चुगलाये अंदाज में बोली।
पत्नी – सुनते हो जी?
नफे – सुनाओ जी!
पत्नी – अपने पड़ोसी जिले भाई साहब के पूरे परिवार को कोरोना हो गया है। डॉक्टर ने उन्हें अपने घर में ही 14 दिन क्वारंटाइन होने के लिए कहा है।
नफे – अरे, ये तो बहुत बुरा हुआ। मैं जिले को फोन कर पूछता हूँ कि अगर उसे किसी चीज की जरूरत हो तो पहुँचा देंगे।
पत्नी – पागल मत बनो। पता भी है कि ये कितनी खतरनाक बीमारी है। अगर लग गयी तो फिर भगवान ही मालिक है। आप उनसे दूर ही रहना। समझे कि नहीं?
नफे – बहुत अच्छी तरह समझ गया। जिले की पत्नी और तुम तो बहुत अच्छी सहेलियाँ हो। आज जब दोस्ती निभाने का समय आया तो कृतघ्नता दिखाने लगीं।
पत्नी – अरे, दोस्ती, रिश्ते-नाते बाद में निभा लेंगे। अभी तो बस अपनी जान बच जाए।
नफे – तुम्हारा मतलब है कि जिले के परिवार की मदद करके हम सब मर जाएंगे।
पत्नी – ओहो, आप समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे।
नफे – मैं तुम्हें और तुम्हारी नीयत को अच्छी तरह समझ रहा हूँ। ठीक है मैं जिले के परिवार की कोई मदद नहीं करूँगा।
धीरे-धीरे समय बीता और नफे का पड़ोसी जिले और उसका परिवार क्वारंटाइन का टास्क भली-भाँति पूरा करके स्वास्थ्य के अखाड़े में दंड पेलने लगा। कुछ दिन बाद नफे की पत्नी उसके पास आयी और बेजान आवाज में बोली।
पत्नी – सुनते हो जी?
नफे – सुनाओ जी!
पत्नी – हम लोगों ने जो कोरोना का टेस्ट करवाया था न।
नफे – हाँ तो?
पत्नी (सुबकते हुए) – उस टेस्ट में हम सबकी रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है।
नफे – (धीमे से) ओहो, तुम जैसी नेगेटिव नारी की भी रिपोर्ट पॉजिटिव आ गयी।
पत्नी – कुछ कहा आपने?
नफे- मैं कह रहा था कि अब 14 दिन घर से बाहर निकलने से छुट्टी।
पत्नी – हाँ, अब अपने पूरे परिवार को 14 दिन तक क्वारंटाइन रहना पड़ेगा।
नफे – हाँ, वो तो रहना ही पड़ेगा।
पत्नी – पर इतने दिन हमें जरूरत का सामान कौन लाकर देगा?
पति – अपना पड़ोसी जिले लाकर देगा।
पत्नी – पर जब उनका परिवार क्वारंटाइन हुआ था। तब हमने तो उसकी कोई मदद नहीं की थी।
नफे – किसने कहा कि मदद नहीं की थी। तुम कृतघ्न हो गयीं पर मैं नहीं हुआ। मैंने जरूरत पड़ने पर जिले के परिवार को सभी जरूरी सामान उपलब्ध करवाया था। अब मदद करने की बारी उसकी है।
पत्नी – इसका मतलब है कि आपने मेरी बात न मान कर जिले भाई साहब के परिवार की मदद की थी।
नफे – हाँ, की थी। क्या मैंने कुछ गलत किया?
पत्नी – कुछ भी गलत नहीं किया। गलत तो मैं ही थी। मुसीबत के समय एक-दूसरे के काम आना ही पड़ोसियों का सच्चा धर्म है। और मुझे इस बात की खुशी है कि आपने अपना पड़ोसी धर्म अच्छी तरह निभाया। मुझसे जो इतनी बड़ी गलती हुई उसके लिए मुझे माफ़ कर देना।
नफे – अब आयीं न लाइन पर।
पत्नी – हाँ, और अब हमेशा लाइन पर रहूँगी।
तभी उन्हें अपने पड़ोस में रहने वाले सूबे के घर कुछ आवाज सुनाई दीं। सूबे की पत्नी उससे जोर-जोर से चिल्ला कर लड़ने में लगी हुई थी।
सूबे की पत्नी – खबरदार जो नफे भाई साहब के घर की ओर झाँक भी लिया तो तुम्हारी खैर नहीं।
सूबे – काहे को आसमान सर पर उठा रखा है।
सूबे की पत्नी – आसमान सिर पर उठाऊँ तो और क्या करूँ। तुम अपनी आदतानुसार नफे भाई साहब से गुटर-गूँ किए बिना मानोगे नहीं। उस गुटर-गूँ के बाद कोरोना तुम्हारे संग आकर अपने पूरे परिवार से गुटर-गूँ करेगा। इसलिए कृपा करके अपने परिवार की सलामती के लिए उनके घर से कुछ दिन के लिए दूर ही रहना।
सूबे – ठीक मेरी माँ, मैं आज से नफे के घर की ओर मुँह करके सांस भी नहीं लूँगा।
नफे की पत्नी – सुन रहे हो? इस बदमाश औरत की जितनी मैंने मदद की होगी, उतनी तो इसके किसी सगे-संबंधी ने भी नहीं की होगी। फिर भी इसकी बातें हमारे लिए इतनी ज़हरीली हो रखीं हैं।
नफे – शायद सूबे की पत्नी पर तुम्हारी संगत का असर हो गया है।
नफे की पत्नी एक बार को गुस्से में नफे को देखती है और फिर ठहाका मार कर हँसने लगती है। नफे भी उस ठहाकों की दुनिया में ठहाके लगाते हुए शामिल हो जाता है। उन ठहाकों में नफे की पत्नी की आवाज सुनाई देती है “काश! सूबे भाई साहब पर आपकी संगत का असर हो और वो भी आपकी तरह पड़ोसी धर्म निभाना न भूलें।” “बिलकुल असर होगा।” ठहाकों के बीच नफे का जवाब गूँजा।