गीतिका/ग़ज़ल

इश्क़ की शायरी

प्यारे इश्क़,
शयन नहीं जो बिछे पत्थर, रुई से बनी शय्या तुम हो।
फूल बिखरे राह पे पड़ा, ज़हर से भरा काँटा तुम हो।
राह खो गये जहाज़ की, रोशनी का खंभा तुम हो।
दर्द-ए-दिल सहलाने वाली, सुहानी निशा तुम हो।
किसी की ज़िंदगी में हुआ, बिना माफ़ी का ख़ता तुम हो।
किसी की ज़िंदगी जीने का, एक ही सहारा तुम हो।
किसी की अहद-ए-वफ़ा तुम हो, किसी की बेवफ़ा तुम हो।
किसी की मुद्दई तुम हो, किसी का मुद्दआ तुम हो।

— कलणि वि. पनागॉड

कलणि वि. पनागॉड

B.A. in Hindi (SP) (USJP-Sri Lanka), PG Dip. in Hindi (KHS-Agra) श्री लंका में जन्मे सिंहली मातृभाषा भाषी एक आधुनिक कवयित्री है, जिसे अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा से भी बहुत लगाव है। श्री लंका के श्री जयवर्धनपुर विश्वविद्यालय से हिंदी विशेषवेदी उपाधि प्राप्त की उसने केंद्रीय हिंदी संस्थान-आगरा से हिंदी स्नातकोत्तर डिप्लोमा भी पा ली है। वह श्री लंका में हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करने की कोशिश करती रहती है।