तुम छुपा के गमें अश्क, मुस्कुराओ तो जानें।
दूर जाना कमाल नही, नजदीक आओ तो जानें।
इसमें क्या कमाल, किसी की बेबसी पे हँसना,
किसी ढहती हुई दीवार को बचाओ तो जानें।
नफरत का हर वार सह लिया मैंने हँस के,
अब मौहब्बत का कोई दाँव चलाओ तो जानें।
वो बहुत खुश है मेरे पैरों में बेडियां डाल के,
मेरे ख्यालात पे भी पहरे बिठाओ तो जानें।
इतराते हो, महलों में चाँद सितारे सजा के,
शहीद की मजार पे चराग जलाओ तो जानें।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”