गीतिका
छोड़कर गम क्यों मुझे जाता नही ?
यह पहेली मैं समझ पाता नही ।
मैं किसी को दर्द देकर, खुश रहूँ ?
इस तरह मैं दिल को बहलाता नही ।
इश्क न बदनाम हो इसके लिए ,
उसकी गलियों में कभी जाता नही ।
इस तरह कुछ हो गईं पाबंदियाँ
यार की कोई खबर लाता नही ।
जो परिंदा है बना परवाज़ को ,
कैद में उसको मजा आता नही ।
गाँव से मैं दूर हूँ, मजबूर हूँ,
शहर मुझको आज भी भाता नही ।
— डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी