एक कप चाय!
“मुआ 2021, सबके जीवन काल का, खासकर प्रेमी युगलों के लिए बड़ा दुखदाई वर्ष साबित हुआ है”, युवा डॉक्टर रोहित ने कहा। वह कोरोना रोगियों के इलाज के दौरान स्वयं संक्रमित होकर गृह पृथकवास झेल रहे थे।
“इस वायरस के देश में आने के पूर्व हमने कितने खुशनुमा दिन व लम्हें बिताए थे। मनपसंद कैफे में घंटों बैठते, चाय-कॉफी के भाप उड़ाते प्याले,मनपसंद स्नैक्स सामने पड़े ठंडे होते रहते, पर हम एक दूसरे में खोए रहते। समय सा थम जाता था। जब चाय कॉफी ठंडी हो जाती, तब वेटर कहता, ‘हॉट ड्रिंक ठंडी हो गई, दूसरी ले आऊँ?’ हम चिढ़कर कहते, ‘जो मर्जी हो करो, पर डिस्टर्ब न किया करो।’
तुम्हारे चिकित्सा जगत में न होने के अपने फायदे हैं, लॉकडाउन के दौरान तुम्हें छुट्टियाँ नसीब हुईं। हम चिकित्सकों को कब अस्पताल जाना पड़े, जाने कितनी देर रुकना पड़े, कभी तय नहीं होता। संक्रमित मरीजों की संख्या कम हुई है, फिर भी ड्यूटी डॉक्टर पीपीई पहन लें, तो घंटों नहीं उतार पाते। हम शिद्दत से ड्यूटी करें, फिर भी रोगी को पंद्रह-बीस मिनट से अधिक नहीं दे पाते। मेडिकल प्रोफेशन के नाते जिम्मेदारी बनती है, सब को बचाने की कोशिश करना।
संक्रमित रोगियों के इलाज के दौरान हमारा खाना-पीना, वाशरुम जाना, सब लगभग बंद हो जाता है। कुछ खाने-पीने के लिए मास्क और दस्ताने उतारने के दौरान मुँह, नाक,आँख कुछ भी छू जाए, तो संक्रमित होने की संभावना रहती है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ होगा।
संक्रमित होने के बाद मिले हैं बतियाने के दो पल। मैं स्वस्थ होता है तो अभी भी ड्यूटी पर ही होता,” बेबसी के दो अश्रु कण डॉक्टर रोहित के चाय के प्याले में जा गिरे।
वीडियो कॉल पर रोहित की गहन उदासी देख-सुन रही श्रुति ने अपनी उदासी छुपाते हुए कहा, “डॉक्टर साहब! दोबारा चाय बना लीजिए, ठंडी हो गई होगी। पृथकवास के दौरान आपके संग कोई है भी नहीं, स्वयं ही करना है।”
“श्रुति! लॉकडाउन खत्म होने पर मंदिर के पट खुल जायें, तब हम चट मंगनी पट ब्याह कर लेंगे, जाने किसके पास कितना वक्त बचा है? परिवार वालों की रजामंदी का इंतजार करते-करते कहीं हम…”
“ऐसी दिल दुखाने वाली बातें न किया करो”, श्रुति की आँखें छलक आईं।
— नीना सिन्हा