घर से दूर जाते वक्त रिश्तेदार ,अपने बच्चों को घर के बुजुर्ग द्वारा जब बाहर जाते समय ये बोलकर कुछ रुपए देते है कि रास्ते में भूख लगे तो कुछ खा लेना या फिर रखले ।इसमे मनुहार छुपी होती है।यदि जिसको देते उसके साथ कोई बड़ा हो तो वो ये जरूर कहता रहने दो।इतने मत दो ।इससे प्यारा तोहफा दुनिया में कुछ और हो ही नहीं सकता।देखा जाए तो ये मदद,आशीर्वाद,स्नेह, ममत्व भरे रूप की सदियों से प्रथा चली आ रही थी।वर्तमान में आधुनिक युग मे ये विलुप्तता कगार पर है।डिजिटल ट्रांजिक्शन ने इसे कम कर दिया।जिसके कारण जो ममत्व भाव भी बड़ो से आशीर्वाद स्वरूप मिलता था।वो छूटता जा रहा है।जो बिदाई के वक्त देने का महत्व की बात ही कुछ और रहती है।यदि इसका प्रयोग करके देंखेंगे तो लेने वाले और देने वाले भले ही करोड़पति हो,उनकी आँखों मे आँसू टपक ही पड़ेगे।ये व्यवहार रिश्तों को मजबूत और मर्मस्पर्शी बनाता है।इसका चलन बरकरार रखना होगा ताकि रिश्तों में स्नेह का स्वरूप निखरता रहे।
— संजय वर्मा”दॄष्टि”