गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अपनी कोई भी पुरानी चीज़ उठाकर देखिये,
लुत्फ कितना आएगा बस आज़माकर देखिये ।
ज़िन्दगी में रंग कितने यूँ समझ में आएगा,
कोई भी नग्मा पुराना ख़ुद ही गाकर देखिये ।
मिल सकेगा तुमको भी लाखों दिलों का प्यार यूँ ,
बस किसी के जख्मों को मरहम लगाकर देखिये ।
कैसे अश्क़ों से भरा है आजकल हर आदमी,
हो सके काँधे पे उसका सर टिकाकर देखिये ।
हँसते हैं जो लोग किसी की मौत पर यूँ ही अबस,
कह दो कोई सपनों में अपना गँवाकर देखिये ।
— हर्ष महाजन ‘हर्ष’

हर्ष महाजन 'हर्ष'

द्वारका, दिल्ली 9968273306 जन्म १५ अगस्त १९५५. तालीम दिल्ली से हुई | कामर्स में पोस्ट ग्रेजुएट (एम्.काम) हूँ | बचपन से लिखने /कहने का शौकीन रहा हूँ | दोस्तों को, उनके आग्रह पर पुराने गानों पर पैरोडी बनाकर सुनाना आम सी बात थी, जिसके चलते उन्होंने मुझे मेरी लेखनी से परिचय करवाया । आज ग़ज़ल-प्रेम मेरी रग-रग में समाहित है | अपनी काव्य रचनाओं में, कल्पना से दूर, जीवन का सच ही उगलता आया हूँ । ग़ज़ल कहते वक़्त मैंने सदा अपने अहसासों को ही सर्वोप्रिय माना है । ग़ज़ल-दोष ठीक करने हेतु, अगर अहसास का (जो मैं कहना चाहता हूँ) मतलब बदलता है तो भी, मैंने कभी समझौता नहीं किया । लेकिन मेरी सभी ग़ज़लें एक आम इंसान भी गुनगुना ज़रूर सकता है । मेरी रचनाओं की भाषा में मूलत: शालीनता, उदासी-पन, दर्द और आशिकाना मिजाज की झलक अक्सर दिखाई देती है । अगर जुबां की बात करूँ तो, मेरी ज़मीन कभी उर्दू की नही रही और न ही उर्दू की कोई पाठशाला में गया हूँ । मेरी बुनियादी तालीम हिन्दी और अंग्रेजी में ही हुई है । सच कहूँ तो मुझे उर्दू की कोई गहन/ख़ास तमीज़-ओ-तहज़ीब भी नहीं है । बस न जाने क्यूँ इस भाषा से मैं जूनून की हद तक मुहब्बत करता आया हूँ । उर्दू का अदब आशना हूँ । घर में मेरे पिता जी की उर्दू ज़ुबान से निकले शब्द के शब्द और उनकी मिठास दिल को छू जाया करती थी, शायद यही वजह रही इस भाषा की ओर झुकाव का । हो सकता है मेरी इस कोशिश में मेरी रचनाओं में इसके तलफ़्फ़ुज़ में कुछ ग़लतियाँ भी नज़र आ जायें । अपने पाठक गण से मेरी गुज़ारिश यही रही है कि उसे नज़र अन्दाज़ कर मुझे आगाह कर दें तो मै उनका आभारी रहूँगा । हर विदा में मेरी कलम ने मेरा साथ दिया है । न जाने कितनी कवितायें, ग़ज़ल गीत, नज़्म, छंद, कहानियाँ, लघु कथाएँ, पट-कथाएँ और अंग्रजी पोएट्री को इस कलम ने अंजाम दिया है | पत्र-पत्रिकाओं से शुरू हुआ सफ़र न जाने कितने ही साझा संकलनों और अपने काव्य संग्रहों, काव्य मंचों, काव्य गोष्ठियों आदि से गुज़रता हुआ अब आपके सामने प्रस्तुत हूँ | साँझा काव्य संकलन और अपने काव्य संग्रहों की पुस्तकों के बारे में : | साँझा काव्य संकलन (1) सृज़न के पथ पर १९९५ –प्रकाशक , दृष्टीकोण , मंडोली नन्द नगरी दिल्ली | (2) धुप ओसारे चढ़ी १९९६ –प्रकाशक ,स्टेट बैंक सहियक मंच, द्वारा राजभाषा अनुभाग दिल्ली आंचलिक कार्यालय | प्रकाशक – जे एम् डी पब्लिकेशन, न्यू महावीर नगर , नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तकें :- (3) खुशबुओं का शहर २००३ (4) एकता की आवाज़ १९९९ (5) शायरों की महफ़िल २००१ (6) काव्य गरिमा २००२ (७) एकता की मिसाल २००४ (8) काव्य गौरव २००६ मेरा अपना काव्य संग्रह (1) दास्तान-ए-ज़िंदगी - प्रकाशक – जे एम् डी पब्लिकेशन, न्यू महावीर नगर , नई दिल्ली | और दूसरा काव्य संग्रह तैयार होने के कगार पर है जल्द ही प्रकाशित होगा | और बहुत सी अप्रकाशित पट-कथाएँ जिनका उल्लेख करते हुए प्रष्टो की तादाद बढाने जैसा होगा |