जब तक बड़े बुज़ुर्गों का डर रहता है
जब तक बड़े बुज़ुर्गों का डर रहता है
तब तलक ही कोई घर घर रहता है
पिता की डाँट को संभाल कर रखना
पास ताउम्र जीने का हुनर रहता है
झांक कर देखो माँ के दिल में कभी
तेरे लिए प्यार का समंदर रहता है
वतन पर कुर्बान हो औलादें जिनकी
फक्र से ऊँचा उनका सर रहता है
क्या बिगाड़ लेंगे जलने वाले तुम्हारा
उसूलों पर चलने वाला निडर रहता है
चराग़ बड़ा हो या छोटा जलाये रखना
अंधेरे पर सबका कुछ असर रहता है
दादा दादी को वक्त नहीं दे पाए हम
इस बात का गम जिंदगी भर रहता है
फूल, पौधे, परिंदे और बच्चे हों जहाँ
उस घर का आंगन बड़ा सुंदर रहता है
जहाँ परिवारों में मेलजोल बेहतर हो
अमन से गुलज़ार वो शहर रहता है
दीवारों से इक मकान बनता है फ़कत
बच्चों बुज़ुर्गों के होने से घर रहता है
क्या कहोगे अपने बच्चों से दादा कहाँ है
बुढ़ापे में बाप वृद्धाश्रम अगर रहता है