गीत/नवगीत

” केवल मिली दुआ “

रमुआ का जीवन ही क्यों फिर

पूस की  रात हुआ।

चेहरे की रेखाओं ने फिर

मन को आज छुआ।

दिन भर खटकर हुई साँझ

पर रोटी नहीं मिली।

नोन – तेल  के गुणा -भाग में

आंखें ही पिघली।

दवा- दवा चिल्लाने पर भी,

केवल मिली दुआ।

बिटिया की आँखों में झाँका

सपने हुए तरल।

रहा ताकता टुक-टुक बैठा,

कटती रही फसल।

फिर उधार की चढ़ी कलम,

और महक उठा महुआ।

@ पंकज मिश्र ‘अटल’

पंकज मिश्र 'अटल'

जन्म- 25 जून 1967 स्थाई निवास- शाहजहांपुर ( उत्तर प्रदेश) लेखन विधाएं- अतुकान्त कविता, नवगीत,बाल-साहित्य, समीक्षात्मक लेख,साक्षात्कार। प्रकाशन- देश के विभिन्न क्षेत्रों से प्रकाशित हो रही पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, ई-पत्रिकाओं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन जारी है। इसके अतिरिक्त विभिन्न समन्वित संकलनों में भी रचनाओं का प्रकाशन। प्रसारण- देश के विभिन्न आकाशवाणी केंद्रों पर रचना पाठ और प्रसारण। प्रकाशित कृतियां- अब तक चार पुस्तकें प्रकाशित- 1. चेहरों के पार भी ( लंबी कविता,1990) 2. नए समर के लिए ( कविता,2001) 3. बोलना सख्त मना है ( नवगीत,2016) 4. साक्षात्कार:संभावना और यथार्थ (पूर्वोत्तर के हिंदी रचना धर्मियों से साक्षात्कार,2020) संपादन- "आवाज़" फोल्डर अनियतकालिक और अव्यावसायिक तौर पर संपादन और प्रकाशन। सम्प्रति- जवाहर नवोदय विद्यालय सरभोग, बरपेटा आसाम में अध्यापन कार्य। मोबाइल नंबर- 7905903204 ईमेल- [email protected]

One thought on “” केवल मिली दुआ “

  • पंकज मिश्र 'अटल'

    आज मैं आपकी पत्रिका से जुड़ा। पत्रिका के वैविध्यपूर्ण कलेवर और रचनाओं ने मन को छू लिया।
    पत्रिका की रचनाओं को बार बार पढ़ने का मन करता है। आपको और रचनाकारों को बधाई।

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