” केवल मिली दुआ “
रमुआ का जीवन ही क्यों फिर
पूस की रात हुआ।
चेहरे की रेखाओं ने फिर
मन को आज छुआ।
दिन भर खटकर हुई साँझ
पर रोटी नहीं मिली।
नोन – तेल के गुणा -भाग में
आंखें ही पिघली।
दवा- दवा चिल्लाने पर भी,
केवल मिली दुआ।
बिटिया की आँखों में झाँका
सपने हुए तरल।
रहा ताकता टुक-टुक बैठा,
कटती रही फसल।
फिर उधार की चढ़ी कलम,
और महक उठा महुआ।
@ पंकज मिश्र ‘अटल’
आज मैं आपकी पत्रिका से जुड़ा। पत्रिका के वैविध्यपूर्ण कलेवर और रचनाओं ने मन को छू लिया।
पत्रिका की रचनाओं को बार बार पढ़ने का मन करता है। आपको और रचनाकारों को बधाई।