आतंकियों की गिरफ्तारी के बाद विपक्षी दलों में बढ़ती बैचेनी
उप्र की राजधानी लखनऊ में 11 जुलाई 2021 को दो आतंकवादियोें की गिरफ्तारी होने व प्रदेश के कई जगहों पर कुछ और लोगों के छिपे होने की जानकारी मिलने के बाद कई जगह छापामारी चल रही है और कुछ संदिग्ध लोगों को हिरासत में भी लिया गया है। काकोरी में गिरफ्तार दो आतंकियों से पूछताछ के दौरान कई सनसनीखेज खुलासे हो रहे हैं। एक ओर जहां यूपी एटीएस ने समय रहते आतंकियों को पकड़ने में सफलता हासिल की है और उनके माडयूूल को ध्वस्त करने का सराहनीय प्रयास किया है, वहीं दूसरी ओर इस पर प्रदेश में राजनीति शुरू हो गयी है और सेकुलर गैंग बहुत बैचेन हो गया है और एक बार फिर बाटला हाउस एनकाउंटर के आंसू सेकुलर नेताओं की आंखों से बह निकले हैं।
सभी सेकुलर नेता समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव से लेकर बसपा नेत्री मायावाती, कांग्रेस सहित सभी मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाले दल और संगठन तथा मानवाधिकारों की आवाज बुलंद करने वाले लोग एक बार फिर मैदान में निकल पड़े हैं। जिन नेताओं ने कभी याकूब मेनन को फांसी देने का विरोध किया था, अफजल गुरू को फांसी पर लटकाने से लेकर और कश्मीर में बुरहान वानी के एनकाउंटर और फिर जिन लोगों ने पुलवामा हमले को महज दुर्घटना बताया था और बालाकोट पर सबूत मांगकर सेना का अपमान किया था, आज वही लोग एक बार फिर पकड़े गये आतंकियों को अदालत की अंतिम कार्यवाही के पहले ही बेगुनाह साबित करने में जुट गये हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सपा नेता अखिलेश यादव और बसपा नेत्री मायावती आतंकियों व उनके मददगारों को एक संदेश दे रहे हैं कि जब उनकी सरकार प्रदेश में आयेगी, तब उन्हें मुक्त कर दिया जायेगा। समाजवादी सरकार पूर्व में ऐसा कर भी चुकी है।
लखनऊ में दो आतंकवादियों की गिरफ्तारी के बाद समाजवादी नेता अखिलेश यादव ने बयान दिया कि मुझे यूपी पुलिस व भाजपा पर भरोसा नहीं है। बसपा नेत्री मायावती का कहना है कि यूपी विधानसभा आम चुनाव के करीब आने पर ही इस प्रकार की कार्यवाही लोगों के मन में संदेह पैदा करती है। अगर इस कार्रवाई के पीछे सच्चाई है तो पुलिस इतने दिनों तक बेखबर क्यों रही। यह वह सवाल हैं जो लोग पूछ रहे हैं, इसलिए सरकार ऐसी कार्रवाई न करे जिससे जनता में बैचेनी बढ़े। रिहाई मंच जो मुस्लिम समाज का बहुत बड़ा पैरोकार बनता है और हर मामले में अपनी टांग अड़ाता है, ने भी अपने विचार रखते हुए दो आंतकियों की गिरफ्तारी पर अपने सवाल उठाये हैं। आतंकियों की गिरफ्तारी के बाद टीवी चैनलों पर हो रही बहसों में मानवाधिकार के बड़े-बडे विशेषज्ञ भी सामने आ गये हैं और उन्हें गिरफ्तार किये गये आतंकियों की बेगुनाही साबित करने और संविधान की ओर से उन्हें प्रदत्त उनके मानवाधिकारों व कानूनों की दुहाई दी जाने लगी है।
विपक्ष के आरोपों और सवालों का बीजेपी की ओर से तीखा पलटवार किया गया है। भाजपा का कहना है कि आतंकवादियों का समर्थन करना, पोषण और संरक्षण सभी दलों का आधिकारिक एजेंडा है। बीजेपी का कहना है कि सपा मुखिया को यह बताना चाहिए कि उन्हें पुलिस और देश की सेना पर भरोसा क्यों नहीं है? उन्होंने किस पर भरोसा जताते हुए सपा सरकार में आतंकवादियों का मुकदमा वापस लेने की कोशिश की थी? सपा सहित विपक्ष का भरोसा देश को तोडने की कोशिश करने वालो दंगाइयों और अराजक तत्वों पर अधिक है। यही कारण है कि कांग्रेस राज में आतंकियों को बिरयानी खिलायी जाती रही और सपा सरकार में दंगाइयों को हेलीकाप्टर में बैठाकर मुख्यमंत्री कार्यालय लाकर उनका स्वागत किया गया था।
यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि संविधान की शपथ लेकर मुख्यमंत्री रहे अखिलेश यादव अलकायदा के आतंकवादियों को पकडने वाली यूपी सरकार व एटीएस का मनोबल गिराने का काम कर रहे हैं। आज यह सेकुलर गैंग जिस प्रकार से आतंकियों के पकड़े जाने पर अपने चुनावी और घड़ियाली आंसू बहा रहा है उससे यह तो साफ हो गया है कि देश के अंदर ही कितने जयचंद भरे हुए हैं। बसपा नेत्री मायावती आतंक के खिलाफ कार्यवाही पर टाइमिंग पर सवाल उठा रही हैं। यहां पर उनके लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अगर चुनाव सिर पर हों, तो अपराधियों, देशद्रोहियों और पंजाब व अन्य क्षेत्रों में नशे के सौदागरों के खिलाफ कार्यवाही नहीं होनी चाहिए। क्या चुनाव के नाम पर आतंक के खिलाफ कार्यवाही रोक देनी चाहिए, आतंकी गतिविधियां चलती देनी चाहिए? क्या बम धमाकों में सैकड़ों बेगुनाहों को मरते रहने के लिए छोड़ देना चाहिए। क्या बम धमाके में मरने वाले लोगों का मानवाधिकार नहीं होता, केवल आतंकवादियों का ही मानवाधिकार होता है। समाजवादी पार्टी की राजनीति का आधार केवल हिंदू विरोध पर टिका है। समाजवादी दल का हिंदू जनमानस की आस्था व भावनाओं के प्रति कोई लगाव नहीं है, वह केवल मुस्लिम तुष्टिकरण करता है।
अभी जब बंगाल में विधानसभा चुनावों के दौरान व उसके बाद हिंदू जनमानस के खिलाफ हिंसा हुई और वहां की सात हजार महिलाओं के साथ रेप की घटनाओं को अंजाम दिया गया जिसमें दलित, शोषित, वंचित व बेहद गरीब व कमजोर तबके की महिलाएं शामिल थीं, तब बसपा नेत्री मायावती का नारीत्व नहीं जागा और आज वह दो अलकायदा आतंकियों की रिहाई के लिए अपने घड़ियाली आंसू बहा रही हैं। धिक्कार है ऐसी नारी महिलाओं को, जो नारी होते हुए भी महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपमान पर एक शब्द भी नहीं बोलती और न ही कोई ट्विट करती हैं और न ही पत्र लिखती है बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को। बंगाल में दलित समाज की महिलाओं के साथ जो रेप हो रहे थे, उनकी टाइमिंग सही थी क्या बहिन मायावती जी? बहिन मायावती जी शायद आपको यह नहीं पता है कि जब आतंक के खिलाफ कोई कार्यवाही होती है तो जनमानस खुश होता है और सुरक्षाबलों का मनोबल भी बढ़ता है। भय तो गद्दारों और जयंचदों को होता है।
आज यूपी एटीएस की कार्यवाही पर वहीं लोग भरोसा नहीं कर रहे जिन लोगों ने अभी स्वदेशी कोरोना वैक्सीन पर भरोसा नहीं किया था। सपा नेता रामगोपाल यादव ने पुलवामा हमले के बाद बालाकोट की कार्यवाही पर सबूत मांगे थे और सेना का अपमान किया था। सपा नेता अखिलेश यादव का रवैया अभी भी नहीं बदला है और वह अपनी आठ साल पुरानी रणनीति पर चल रहे हैं। वह तो खुलेआम आतंकवादियों के हमदर्द बन जाते हैं। समाजवादी नेता अखिलेश यादव को अगर यूपी पुलिस पर भरोसा नहीं है तो उन्हें जो उनकी सुरक्षा के लिए पुलिसकर्मी दिये गये हैं उन्हें वापस कर देने चाहिए।
सपा नेता अखिलेश यादव की आतंकियों से हमदर्दी किसी से छिपी नहीं है। वह अपने कार्यकाल में आतंकवादियों की रिहाई का प्रयास कर चुके है। वह तो भला हो इलाहाबाद हाई कोर्ट का जिसने बेहद कड़ी टिप्पणियां करते हुए सपा नेता के मंसूबों को ध्वस्त कर दिया था। यह वही अखिलेश यादव हैं जिन्होने वाराणसी, फैजाबाद व लखनऊ में हुए सीरियल धमाकों में पकड़े गये आतंकियो को रिहा करने के प्रयास किये थे। दिसंबर 2007 में उप्र के रामपुर मे सीआरपीएफ कैंप पर हुए आतंकी हमले में 4 दोषियो को अदालत ने फांसंी की सजा सुनाई, जबकि एक उम्रकैद और एक दोषी को दस साल की सजा सुनाई गयी थी। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने रामपुर में जवानों के कैंप पर हमला करने वाले जिन अतंकियो को फांसी की सजा सुनाई गयी थी, इन्हीं आतंकियों के मुकदमे सपा सरकार में वापस लेने के प्रयास हुए थे।
समाजवादी पार्टी के नेताओं ने कभी भी आतंक के खिलाफ कठोर कार्यवाही का समर्थन नहीं किया है, क्योंकि वह लोग सदा से ही आतंकियो के हमदर्द रहे हैं। बाराबंकी में आज से आठ वर्ष पूर्व एक आतंकी मारा गया था, तब भी सपा मुखिया अखिलेश यादव ंबौखला गये थे और तब के पुलिस अधिकारी विक्रम सिंह और 42 पुलिकर्मियों पर मुकदमा कर दिया था।
आज सबसे बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या अगर देश के किसी भी हिस्से में चुनाव होने जा रहे हैं, तो क्या छह से आठ महीने पहले से ही सारे काम रोक देने चाहिए? अगर चुनावों के दौरान कोई बड़ा आतंकवादी हमला या किसी शत्रु राष्ट्र का भारत पर हमला हो जाये, तो भारतीय सेनाओं या सुरक्षाबलों को देश व जनमानस की सुरक्षा के लिए कठोर कार्यवाही नहीं करनी चाहिए या फिर देशहित में कोई बड़ा कदम नहीं उठाना चाहिए आदि -आदि? असल बात तो यह है कि अब उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनावों को लेकर तैयारियां तेज हो गयी हैं और सभी दलों ने अपना विमर्श फिट करना शुरू कर दिया है । सभी सेकुलर दलों में मुसलमानों का वोट पाने की अंधी दौड़ शुरू हो गयी है।
यही कारण है कि अब अलकायदा के आतंकियों की गिरफ्तारी के बाद सभी दलों में मुसलमानों के दिल में अपनी जगह बनाने की होड़ भी शुरू हो गयी है फिर चाहे देश व प्रदेश की सुरक्षा ही दांव पर क्यों न लग जाये? अगर कल को सीमा पर अचानक युद्ध के बादल मंडराते हैं तो हमें सबसे पहले अपने घर के अंदर गली मुहल्लों में व राजनैतिक दलों के बीच जो गददार व जयचंद छिपे हैं उनको बेनकाब करना होगा व पकडकर नियंत्रित करना होगा।
— मृत्युंजय दीक्षित