लघुकथा

मेरा देशप्रेम

हमेशा की तरह दादी ने वही राग अलापना शुरू किया कोई भी अपने जामुन की गुठली फेंकेगा नहीं, इस पैकेट में डाल दो ।
क्या दादी उस दिन आम की गुठली रखवा ली सबसे अब ये, इतना क्या जमा करके सुखाती हो क्या करती हो आप इनका? सोनू के सवाल का जवाब चिंकी ने दिया अरे दादी जब सुबह की सैर को जाती हैं न मेरे साथ तो इन्हे ले जाती हैं और सड़क किनारे लगाती जाती हैं । इसलिए तो इन्हे सैर पर भी अलग अलग इलाके में जाना होता है ।
अरे ये सब आप क्यों करती हो दादी सड़क किनारे पेड़ पौधे लगाना सरकार का काम है उन्हे करने दीजिए आप को क्या पड़ी है?
दादी जो अब तक शांति से बीजों पर नज़र जमाए थीं बच्चों से  कहा “बेटा इसी बहाने वृक्षारोपण हो जाता है, प्रकृति सेवा के साथ साथ देश भक्ति भी कर लेती हूँ ।”
दोनो बच्चों ने आश्चर्य से पूछा पर वो कैसे दादी?
वो ऐसे कि जब ये बीज पौधे के रूप में जन्म लेंगे तो सभी को ऑक्सीजन, फल, छाया सबकुछ देंगे और प्रकृति को भी शुद्ध रखेंगे । मैं देश के लिए सीमा पर लडूं या चुनाव लड़कर  नेता बनूँ या पुलिसकर्मी बन जाऊं ऐसा सब तो नहीं कर सकती तो क्या हुआ मैं अपने शहर को हरियाली से भरकर अपने हिस्से की देशभक्ति करती हूँ । लोगों को स्वस्थ रखने और ऑक्सीजन की कमी दूर करने का प्रयास करती हूँ। सबसे बड़ी बात मुझे ऐसा करके आत्मिक शांति मिलती है, यही मेरा देशप्रेम है।

— गायत्री बाजपेई शुक्ला

गायत्री बाजपेई शुक्ला

पति का नाम - सतीश कुमार शुक्ला पता - रायपुर, छत्तीसगढ शिक्षा - एम.ए. , बी एड. संप्रति - शिक्षिका (ब्राइटन इंटरनेशनल स्कूल रायपुर ) रूचि - लेखन और चित्रकला प्रकाशित रचना - साझा संकलन (काव्य ) अनंता, विविध समाचार-पत्रों में ई - पत्रिकाओं में लेख और कविता, समाजिक समस्या पर आधारित नुक्कड़ नाटकों की पटकथा लेखन एवं सफल संचालन किया गया । सम्मान - मारवाड़ी युवा मंच आस्था द्वारा कविता पाठ (मातृत्व दिवस ) हेतु विशेष पुरस्कार , " वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ "काव्य प्रतियोगिता में विजेता सम्मान, विश्व हिन्दू लेखिका परिषद् द्वारा सम्मानित आदि ।