धरती है प्यासी बुलबुले उदास हैं
मेघा कब बरसोगे
मेघा कब बरसोगे
पुरवाईयां के काफिले उदास हैं
मेघा कब बरसोगे
मेघा कब बरसोगे
खेत खलियान सभी सूखे पड़े हैं
धरती मां के सीने में खंजर गड़े हैं
इंसानियत को भूल गया है इन्सा
पानी के लिए आपस में लड़े हैं
भाईचारे के सिलसिले उदास हैँ
मेघा कब बरसोगे
मेघा कब बरसोगे
भूखा है यौवन भूखा बचपन है
अन्नदाता की पलकों पे सूनापन है
बोझिल बोझिल से दिन रात हैं
सन्नाटा सा पसरा हर आंगन है
सूखा पड़ा है फसलें उदास हैं
मेघा कब बरसोगे
मेघा कब बरसोगे
हुआ हर चमन अब उजाड़ सा
हर एक दिन लगता पहाड़ सा
मेघ देवता कब मेहरबान होंगे
इंतजार का हर पल है ताड़ सा
मनसुख दरख्तों के तले उदास है
मेघा कब बरसोगे
मेघा कब बरसोगे
— ओम प्रकाश बिन्जवे “राजसागर”