अनकहे ख़्वाब
नींद आँखों में इस क़दर,
ले आती ख़वाब बे हिसाब ।
कभी नदियाँ, कभी झरने,
कभी देखूँ सुंदर बाग,
फूल तितली चमन हवाएँ,
रहते ख्वाबों में मेरे साथ ।
और जब अपने होते साथ,
दर्द की कोई न होती बात।
कुछ हमेशा याद रहते,
कुछ भूल जाते ख़्वाब ।
मेरी मंज़िल थी कितने पास,
वो अक्सर झूठे होते ख़्वाब।
समुंदर जैसी खारी ज़िन्दगी में,
आँसुओ का पानी है बेहिसाब।
दर्द , खुशी, दुःख परेशानिययाँ,
कुछ न हो तो ज़िन्दगी बर्बाद।
तकलीफें कितनी भी हो,
लड़ना सीखो उनसे बे हिसाब।
कुछ ख़्वाब ऐसे भी होते हैं,
पूरे होते तो बन जाते अज़ाब।
भर दे खाली झोली में खुदा,
कुछ अनछुए , अधूरे से ख़्वाब।
— आसिया फ़ारूक़ी