दवा और दुआ
घंटो लाइन में खड़े रहने के बाद मेरा नंबर आनेवाला था ही, की मुज़से पहले एक बुजुर्ग थे | उनके चीथड़े जैसे कपड़े उनके गरीबी को दर्शा रहे थे| उपर फटी-सी पुरानी सफेद कमीज़ थी,और निचे जगह-जगह से फटी हुई लुंगी थी| उनके लुंगी पे सिलाई के सफ़ेद-सफ़ेद धागे साफ उभर के आ रहे थे|
उस मेडिकल स्टोर पे उन्होंने पेरासिटामोल गोली खरीदी थी,और वे धीरे-धीरे अपने बुजुर्ग पावों को लाठी का सहारा देते हुए निकल ही रहे थे की मैंने कहाँ “भैया, एक पेरासिटामोल गोली का पत्ता देना”| “पेरासिटामोल तो अभी ही खत्म हुई बेटा” ऐसा सामने से मुझे जवाब मिला|
हमारी बाते सुन के वे बुजुर्ग चाचा बोले “बेटा मेरे पास से रख लो तुम आधी गोलिया”| मेने कहाँ “अरे रहने दीजिये में कहीं और से खरीद लुंगी”| उन्होंने बड़े-ही भावपूर्वक मुज़से कहा की “अपने इस गरीब चाचा पास से दवा नहीं दुआ समझ के रख लो बेटी”|अब ऐसी दुआ को में मना नहीं कर सकती थी और ना ही पैसो में तोल सकती थी|