अब जिदंगी क्या हो गई
उलझ सी गई है अब जिंदगी,
पल दो पल में ये जो अंतराल आया ।
मुठिया भींच सी गई जिंदगी है,
वेग लहरों ने भी जो तीव्र घुमाया ।
चक्रवव्यूह सी बन गई जिंदगी है,
विराट विध्वंस ने ऐसा तरकस चलाया।
विषधार सी बनी अब जिंदगी है,
बहरूपियों ने फिर जो दफन कराया ।
अज्ञात सी अब बनी जिंदगी है,
षड्यंत्र समीर ने ऐसा जो बिछाया ।
चिंतनशाला सी हुई जिंदगी हैं,
शून्यता ने जो ऐसा पाठ पढ़ाया।
आधारहीन सी हुई जिंदगी है,
सृष्टि ने विकराल ऐसा कहर बरसाया ।
कब्रिस्तान सी बनी जिंदगी है,
बुझी चित्ता को देखो फिर जलाया ।
दहलीज लांघ गई जिंदगी है,
परिंदों को फिर से रेगिस्तान पहुंचाया ।
— शालू मिश्रा नोहर