लघुकथा

छलावा

मीना को समझ नही आ रहा था कि आजकल राजीव के मन मे क्या चल रहा है। उसको ऐसा लग रहा था कि आजकल राजीव उस पर कुछ ज्यादा ही ध्यान देने लगे हैं। उसके साथ समय बिताने के बहाने ढूंढते रहते हैं।उसने खाना टाइम से खा लिया कि नही।उसको कुछ चाहिए तो नही।
 दिमाग मे चल रहे इन्ही ख्यालों की उथल पुथल में उसको पता ही नही चला कब वो तीस साल पीछे पहुंच गई ।
कितने अरमान लेकर आई थी मीना इस घर मे  राजीव की दुल्हन बन कर । उसे राजीव को पहली नजर में देखते ही उस से प्यार हो गया था। सगाई से शादी के बीच के समय मे उसने बहुत बार कोशिश की राजीव से बात करने की।लेकिन राजीव को तो जैसे उससे बात करने में कोई दिलचस्पी थी ही नहीऔर उसको लगता था किवो शायद धीरे धीरे खुलने वाले स्वभाव के होंगे।या शायद अभी अपने घर वालों से शरमाते होंगे।
शादी के बाद उसको असलियत पता चली जब राजीव ने खुलासा किया कि वो उसकी पत्नी तो बन गयी है लेकिन ये शादी उन्होंने घर वालों की खुशी के लिए की है।प्यार तो वो किसी और से करते हैं ।लेकिन उससे शादी इसलिए नही हो पाई क्योंकि दोनो के घर वाले कुंडली को बहुत ज्यादा मानते हैं ।वो लड़की जिससे वो प्यार करते थे वो लड़की मांगलिक थी और बहुत से पंडितों से पूछा लेकिन किसी ने भी इस शादी के लिए रजामंदी नही दी।इसलिए मजबूर हो कर उन्हें माँ बाप की मर्जी से मीना से शादी करनी पड़ी।
मीना तो मन ही मन में पति में ही प्रेमी को ढूंढ रही थी।वो उस दौर की लड़की थी जब शादी से पहले लड़की को किसी लड़के से मिलने या उसके बारे में सोचने की अनुमति नही होती थी।
वो हमेशां यही सोचती थी कि वो पहले शादी करेगी फिर प्यार।अपने सभी अरमान अपने जीवनसाथी संग ही पूरे करेगी।
लेकिन राजीव से ये सब सुनकर वो तो जैसे एक दम से पत्थर ही हो गयी।ज़िन्दगी ने जैसे उसके साथ बहुत बड़ा मज़ाक किया था। बहुत मुश्किल सेउसने खुद को संभाला था।
वो राजीव के घर वालों के लिए एक आदर्श बहु भी बन गयी,राजीव की बहुत अच्छी पत्नी बनने के साथ साथ उसके बच्चों की माँ भी बन गयी लेकिन जो अपने प्रियतम की प्रेयसी बनने का सपना उसने देखा था वो तो शायद अतीत की गहराईयों में ही कहीं दफन हो गया था।
अचानक से उसको ध्यान आया कि समय शायद बहुत हो गया है और अभी किचन में बहुत काम पड़ा है। रात का खाना निपटा कर मीना जब अपने बेडरूम में आई तो उसको लगा जैसे राजीव उसी का इंतजार कर रहे हैं। थोड़ी हैरानी हुई कि जो मस्तमौला इन्सान टीवी देखते देखते ही खर्राटे मारने लगता हो आज उसके इंतजार में बैठा है।
“क्या हुआ,आप सोए नही अब तक? तबियत तो ठीक है न आपकी ,कुछ चाहिए तो बताओ’ मीना ने पूछा
राजीव बोले,” मीना  इधर आओ मेरे पास बैठो।बहुत दिनों से तुमसे कुछ कहना चाह रहा हूँ।लेकिन हिम्मत नही हो रही।आज बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटा पायाहूँ।क्योंकि अगर आज नही कहा तो फिर शायद कभी नही कह पाऊं।
मीना बोली,”कहिए क्या कहना चाहते हो जी?
राजीव उसका हाथ पकड़ते हुए बोले,”मीना मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ।मुझे अब जाके अहसास हुआ है कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ। प्यार करना और निभाना क्या होता है ये तो मैंने तुमसे सीखा।सच मे अब जाके प्यार का मतलब समझ मे आया है।बाकी सब तो छलावा ही था।”
आगे से मीना ने जवाब दिया,”लेकिन मेरे दिल में अब ना तो प्यार बचा है और ना ही प्यार के लिए जगह”
कहते हुए मीना ने उठकर कमरे की बत्ती बुझा दी और रोज़ की तरह करवट बदल कर सो गई।
— रीटा मक्कड़