मुक्तक
हौसलों की बुलंदी से चट्टानों को चूर करूँगी
दुश्मनों को झुकने को अब मैं मजबूर करूँगी
मंजिल चाहे कितनी दूर क्यों हो मेरी दोस्तों
विश्वास अटल है आये संकटों को दूर करूँगी
भाव का सागर हृदय में रोता रहा
हृदय मेरा बीज प्रेम के बोता रहा
नयन बंद किये जब दर्शन हुआ है
स्वप्न में जागकर मन ये सोता रहा
श्याम सांवरे कन्हैया ओ मुरलीधर
मुस्कराते हुए देखो गिरधर नागर
शरण आयी मैं मीरा राधा बनकर
प्रीत की दृष्टि से निहारों इक नजर
विश्वास है विधाता मंजिल मिल जायेगी
मुरझायी जीवन की कली खिल जायेगी
कृपा कर दो महादेव प्रभु मुस्कराते हुए
सहज ही घावों को मुस्कान सिल जायेगी
वही लाता सिंधु से मोती जिसमें जूनून है
शेर से लड़ता वही है जो शेर का खून है
जो डर कर भाग गया मैदान से दोस्तों
उसमें हिम्मत का नहीं कायर का मजमून है
— आरती शर्मा (आरू)
विशेष शब्दावली का अर्थ
सहज – सरल , सिंधु – सागर, मजमून – विषय