गीत
यहाँ हर तरफ है अनीति पर सच्ची बातें कौन कहे ?
द्रुपदसुता निर्वस्त्र हो गई , भीष्म, द्रोण सब मौन रहे।
द्रुपदसुताएँ रोज रो रहीं,अंधे बहरों के शासन में।
रोज हिरन मारें जाते हैं, प्रजातंत्र के इस कानन में।
उसकी खातिर नियम न कोई ,दूजो पर प्रतिबंध करे।
उसकी कुर्सी रहे सलामत ,चाहे कोई जिए मरे ।
न जाने क्या भय है दूने भी,आधे या पौन रहे ?
द्रुपदसुता ……………………………….
कुछ बेचारे मजबूरी में ,मन की आग दबाये बैठे ।
चाटुकारिता में कुछ लोभी ,पदरज माथ लगाये बैठे।
प्राण गँवाये कुछ लोगों ने,लेकिन आँखे नहीं खुलीं,
कुंभकर्ण कुछ हुए यहाँ पर ,निद्रायोग लगाये बैठे ।
जिनसे आशायें पाली थीं ,वो भविष्य के दौन रहे ।
द्रुपदसुता………………………………….
यह जगती चलती रहती है,कुछ भी स्थिर नही यहाँ।
अत्याचारी ,कपटी, बतला फिर तेरा अस्तित्व कहाँ ?
जीवित तन में कीड़े पड़ते,इतने शाप इकट्ठा मत कर !
ईश्वर से कुछ नही छिपा है,कम से कम तू ईश्वर से डर!
समय बहुत बलवान ,समय पर सिंह कई मृगछौन रहे।
द्रुपदसुता…………………..
——————डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी ,११/०८/२०२१ गोरखपुर